जय जय गिरिबरराज किसोरी
जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। जानकी जी ने अपनी पसंद का बर प्राप्त करने के लिए मां पार्वती की ऐसी स्तुति की जो हृदय में आनंद का अमृत रस की तरह उतर जाता है : हिमालयराज सुता की जय हो ! चकोरी की भाँति भगवान महेश के मुख मंडल रूपी चंद्रमा को निरखने वाली उनकी प्रिया की जय हो ! गणेश और कार्तिकेय जैसे मंगलकारी पुत्रों की माता की जय हो ! हे सम्पूर्ण संसार को जन्म देने वाली तथा उसे शक्ति व प्रकाश प्रदान करने वाली महामाता आपकी जय हो ! हे माँ, आपका न कोई आरम्भ है, न मध्य है और न ही कोई अंत है । आपकी अनन्त महिमा का ज्ञान स्वयं वेदों के लिए असंभव है । होने का होना अर्थात संसार का सृजन, उसका संरक्षण तथा उसका अन्त, हे माता, आप इन शास्वत क्रिया की श्रोत हैं । विश्व को आकर्षित करने वाली, हे माता, आप ही एक मात्र ऐसी हैं जिस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है – आप ब्रह्मांड में स्वतंत्र विचरण करती हो ।