Sunday 25 December 2016

Atal Bihari Bajpai



Saraswati Shishu Mandir, Gorkhibara, Gwalior has the honour of schooling a child that succeeded in putting a brilliant example of the politics that wooed principles and probity. The promising boy grew up and graduated from Victoria (now Laxami Bai) College with distinction in Hindi, Engilish and Sanskrit. Finally, DAV College Kanpur developed this boy as a master politician by awarding a first-class degree in Political Science. This well-educated young man was born to Krishna Devi and Krishna Bihari Bajpai on 25 December 1924. His ancestral village is Bateshwar, UP from where his grandfather Pt Shyam Lal Bajpai had migrated to Gwalior. Now we are proud of our immortal leader, prominent statesman, fabled poet and our 10th Prime Minister, Atal Bihari Bajpai. He had his own energy that lifted him to the top seat of responsibility. This is why he represented the common people and not to a particular class. Like our much loved Prime Minister Sri Lala Bahadur Shastri, he has been a real patriot, a man of the highest principles. He earned unblemished reputation because he loved all of the countrymen. I remember our most revered leader Bharat Ratna Sri Atal Bihari Bajpai on his Birth Anniversary. May he live long!

टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
                          - अटल बिहारी वाजपेयी

Sunday 11 December 2016

३१वाँ भक्ति, योग वेदांत सम्मेलन, हीरा सिंह लान, बहराइचएक रिपोर्ट
अनंत श्री विभूषित आचार्य प्रवर युग पुरुष स्वामी परमानन्द गिरी जी महाराज की अध्यक्षता में तथा साध्वी चैतन्य सिन्धु जी के संचालन में भक्ति, योग वेदांत सम्मेलन - हीरा सिंह लान, बहराइच की पहली सभा दिनांक 7 दिसम्बर 2016 बुधवार, सायं 6.00 बजे से प्रारंभ हुई |
मानवता का कल्याण चित्रकूट की पावन धारा से पधारे महामंडेलेश्वर स्वामी जगत प्रकाश त्यागी जी महराज ने राम कथा के माध्यम से श्री राम के आदर्श को जीनव में अपनाने की प्रेरणा प्रदान की | महामंडलेश्वर बाल योगी स्वामी ज्योतिर्मायानंद जी ने कहा क़ि सभी प्रकार के दानों में विद्या दान (ब्रह्म ज्ञान) सर्वश्रेष्ठ दान है | इस दान से मनुष्य जन्म मरण के चक्र से छुटकारा पा जाता है | इस अवसर पर स्वामी श्राद्धनंद, स्वामी निर्मायानंद जी ने भी अपने उदगार व्यक्त किए | बृंदावन की साध्वी समाहिता जी ने भगवान के अमृत भजनों से सबको भक्ति रस से सराबोर किया |
अगले दिन से प्रातः काल 6.30 से 8.00 बजे तक योगासन, प्राणायाम और ध्यान यगिराज प्रोफ़ेसर प्रेम चन्द्र मिश्र के द्वारा प्रतिदिन कराया गया | उसी सत्र में समाधि के अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति पूज्य गुरुदेव स्वामी परमानंद जी के मार्ग दर्शन में भी हुए | इस प्रकार ये कार्यक्रम रविवार, 11 दिसम्बर 2016 की अंतिम सभा के पश्चात समाप्त हुए |
इस पन्च दिवसीय सम्मेलन की विभिन्न सभाओं को संबोधित करते हुए पूज्य सद्गुरुदेव भगवान ने अध्यात्म के अलग-अलग विषयों पर चर्चा की | उन्होने "परमात्मा क्या है और मृत्यु क्या है ?" विषय पर व्याख्या करते हुए कहा मैं जो कह रहा हूँ वह किसी जाति, धर्म देश विशेष के लिए नहीं है अपितु संपूर्ण मानवता के लिए है | बहुधा लोग तुमसे मतलब शरीर से लगाते हैं जो बचपन, जवानी और बुढ़ापे को प्राप्त होते हैं पर तुम वास्तव में वह हो जो बचपन, जवानी और बुढ़ापे में रहता है और देह छूट जाने के बाद भी रहेगा |
परमात्मा देह नहीं वह है जो प्रत्येक देहधारी में है, जो जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति में रहता है | बचपन, यौवन या बुढ़ापा प्रकृति के धर्म हैं | मृत्यु देह छोड़ना नहीं देहाभिमान छोड़ना है | ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म हो जाता है | नींद परमात्मा की बड़ी देन है | यदि नींद न आए तो पागल हो जाएँ | जैसे आप नींद में चले जाते हो उसी प्रकार एक शरीर से दूसरे शरीर में चले जाते हो | गहरी नींद में पापी, पुन्यात्मा, ग़रीब अमीर सब बराबर होते हैं | अतः सुख से कौन सोता है वही जो समाधि में है | बिना नींद के जो सो जाय वह परमात्मा में स्थित होता है | सुषुप्ति में कोई वर्तमान नहीं होता | प्रकृति के पार ले जाने वाली भागवत कथाराम कथा और गीता का ज्ञान है | भगवान की कथा कहने वाला मुक्त होता है |
पूज्य गुरुदेव ने "हिन्दू धर्म में वेद सम्मत बात ही मान्य है" विषय पर चर्चा की | उन्होने कहा कि हम गीता तथा राम चरित मानस को इसलिए मानते हैं क्योंकि वेद सम्मत है | उपनिषद् रूपी गाय का अमृतमय दूध गीता है, अर्जुन बछड़ा है और उस दूध को दुहने वाला ग्वाला भगवान कृष्ण हैं | अब इस दूध को जो पीता है वही सुधी जन हैं | परमात्मा का अपरोक्ष ज्ञान हिंदू धर्म के ग्रंथों के द्वारा ही हो सकता है | एक ही देव है जो सभी प्राणियों में स्थित है | वह अविभक्त है परंतु प्राणियों में विभक्त सा दिखता है | समान अग्नि सब में है, एक ही चेतना सब में है | यह हमारा भ्रम है कि हम उसे अलग-अलग समझते हैं | जो सब में एक ही परमात्म तत्व का दर्शन करता है वही वास्तव में देखता है | मैं मरता, जन्म लेता नहीं हूँ इस रहस्य को विरले ही जानते हैं | प्रकृति और पुरुष अनादि हैं और यह सृष्टि प्रकृति और पुरुष द्वारा हुई है |
परम पूज्य सद्गुरुदेव ने कहा कि कर्म के द्वारा प्राप्त होने वाला प्राप्त अनित्य और क्षणिक होता है और अंत में दुख देता है | अकृत वह है जो कृत से प्राप्त नहीं होता | जैसे घड़े को प्राप्त करने के लिए कार्य की आवश्यकता है परंतु मिट्टी को किसी कार्य से प्राप्त नहीं किया जा सकता | नारायण ने ब्रह्मा को चतुश्लोकी भागवत सुनाते हुए कहा कि सृष्टि के आदि में मैं था | मेरे अलावा कुछ भी नहीं था | मनुष्य की इच्छा की जब पूर्ति होती है तो प्रसन्नता होती है और जब इच्छा की पूर्ति नहीं होती है तब वह निराश होता है | संसार की समस्त उपलब्धियों में भय व्याप्त है केवल वैराग्य ही अभय प्रदान करने वाला है क्योंकि उससे मुक्ति प्राप्त होती है | फिर भी मनुष्य की यात्रा स्वार्थ से परमार्थ की प्रेरणा प्रदान करती है | यदि यह पक्का ज्ञान हो जाय कि ईश्वर है, सर्वग्य है, सर्वशक्तिमान है, कर्म फल का प्रदाता है तो संसारिक जीवन बुरा नहीं हो सकता | वह बुरा तब होता है जब आप इस ज्ञान के बिना संसारिकता में लिप्त होते हैं, आप भयभीत होते हैं, निराश होते हैं और कई बार आप अवसाद के शिकार हो जाते हैं |
'स्वामी परमानंद शिक्षा निकेतन, खम्हरिया शुक्ल
बहराइच जनपद के तहसील महसी में खम्हरिया शुक्ल स्थित 'स्वामी परमानंद शिक्षा निकेतन' ने शनिवार, 10 दिसम्बर 2016 को अपने संस्थापक परम पूज्य स्वामी परमानंद जी महाराज की अध्यक्षता में अपना वार्षिकोत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया | पूज्य गुरुदेव की कृपा से विद्यालय ने बड़ा विकास किया है | इस विद्यालय में भव्य भवन, बाग, खेल का मैदान इत्यादि सब कुछ है | विद्यालय में 12 अध्यापक हैं और लगभग 300 बच्चे निःशुल्क विद्या प्राप्त कर रहे हैं | विद्यालय में अभी प्राथमिक स्तर तक की कक्षाएँ चल रही हैं |
इस महोत्सव में शामिल नागरिकों भीड़ बड़ी प्रसन्न व उत्साहित थी | “स्वामी परमानंद जी महाराज की जैघोस के साथ लोगों ने गुरु के आगमन का स्वागत किया | संगीत शिक्षक श्री आशुतोष पांडे के निर्देशन में विद्यालय के छोटे-छोटे छात्रों ने बड़े ही सुंदर सास्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जिसमें गुरु बँदना, नोट बंदी एकांकी, स्वच्छ भारत एकांकी, रमेश चंद्र तिवारी द्वारा रचित अँग्रेज़ी में गुरु बन्दना जिसे एक नन्हें से बचे ने प्रस्तुत किया, गणपति बप्पा लोक नृत्य, हिन्दी व अँग्रेज़ी में संबाद, कविता का पाठ शामिल हैं | बच्चियों ने लोकगीत एवं लोकनृत्य का अद्भुत प्रदर्शन किया | संगीत अध्यापक ने इन कार्यक्रमों का संचालन किया |
गुरुदेव ने भाग लेने वाले बच्चों को पुरस्कृत किया और अपने संबोधन में कहा कि मैने कभी सोचा न था कि यहाँ इस पिछड़े क्षेत्र में विद्यालय भी होगा | ब्राहण श्री सोहल लाल शुक्ल ने ज़मीन दी, हमने ब्रिक्ष लगाए और आज यहाँ शिक्षा निकेतन चल रहा है | उनके वरद पुत्र श्री नित्यानंद जी महाराज आज यहाँ विराजमान हैं | हम हृदय से बहराइच के लोगों को कोटिशा साधुवाद देते हैं जिनके उदार सहयोग से विद्यालय चल रहा है |
अंत में उन्होने जन्मंगल के लिए माननीय प्रधान मंत्री जी की प्रसंसा करते हुए कहा कि काला धन निकालने के लिए उन्होने बहुत बड़ा कदम उठाया है राष्ट्र को उनका सहयोग करना चाहिए | अब हम परम्परागत मार्ग पर चलते हुए दुनिया के साथ नहीं चल सकते |
पुरुषोत्तम दास अग्रवाल, कैलाश नाथ डालमियां, शीतल प्रसाद, कुलभूषण अरोरा, मोहन लाल गोयल, रमाकान्त गोयल, विजय यादव, रमेश तिवारी, राकेश रस्तोगी, नागेश, मदन लाल रस्तोगी, अशोक मतन्हेलिया, बी. के सिंह, मुरली मनोहर मातन्हेलिया, मनीष अग्रवाल, गजानन अग्रवाल, सीता राम केडिया, आदि अखंड परंधाम समिति के सदस्यों ने गुरुदेव का मल्यार्पण करके स्वागत किया और श्री हरिनाथ प्रसाद मिश्र (प्रधानाचार्य), श्री अनिल कुमार बाजपेयी (सहायक प्रधानाचार्य), तथा अध्यापक गण सर्वश्री राकेश कुमार श्रीवास्तव, सुशील कुमार बाजपई, भीमसेन बाजपई, पंकज कुमार शुक्ल, वीरेंद्र कुमार गौड़, दिव्यलोक श्रीवास्तव, श्रीमती मीना श्रीवास्तव  ने व्यवस्था संभाली | इस तरह कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन हो गया |

A Prayer to GurudevBy Rmesh  Tiwari

A green, green garden we entered,
Glorious though, we felt disturbed
Because of fear of the unknown.
It looked like some alien zone.

Names of flowers, trees and plants
We learnt from our dads and moms.
The world in classrooms then unveiled;
Life engaged us in its field.

All was dark yet all was dark,
Course mysterious, no spark
Until we bathed in thy light,
In thy beauty blessed and bright.

To thy feet, we make deep bows.
Make us bloom like morning rose.
O Gurudev, O the soul divine!
Shade us by thy hand benign.



प्रस्तुति, रमेश चन्द्र तिवारी

Thursday 8 December 2016

डिजिटल भुगतान


एक ग्रामीण गुड बनाने के कारखाने में देर रात को भट्टी बुझ चुकी थी और कढ़ाई खाली पड़ी थी | कुछ मेढक कूदते-कूदते आए उस खाली कढ़ाई में बैठ गये, कढ़ाई ठंढी थी | सुबह हुआ कि भट्टी झोकने वाला आ गया | उसने गूले में आग डाली और ईधन झोकना शुरू कर दिया | कढ़ाई के गरम होते एक मेढक कूद कर बाहर निकल गया | कढ़ाई कुछ और गरम हुई, कुछ और मेढक भी कूद कर बाहर निकल गये | उनमें से एक आलसी मेढक था जिसने सोचा बाहर ठंढक में क्या जाना इसकी गर्मी में तो आनंद है | वह बैठा रह गया | कढ़ाई अचानक इतनी गरम हो गई कि उसके पंजे झुलस गये | अब वह कोशिश करके भी बाहर नहीं निकल सका |   उसमें जब रस डालने वाले आए तब उन्होने उस मेढक को देखा जो जलकर सूख चुका था | तात्पर्य यह है कि मोदी सरकार मौज से बैठने वाली सरकार नहीं है - उसे युग परिवर्तन करना है | अतः डिजिटल भुगतान के लिए आख़िर बाध्य होना ही पड़ेगा तो अभी से क्यों नहीं | परिवर्तन प्रारंभ में दुखदाई होता है लेकिन बाद में वही एक नई व और अधिक सूबिधा जनक सभ्यता के रूप में उभर आता है | यूपीए की अलसाई नीतियाँ भूलो और मोदी जी की कर्म प्रधान नीतियों को समय रहते स्वीकार करो |

Friday 2 December 2016

Love and Beauty


Often in my mind’s eye,

I see something ethereal, gorgeously warm,

Rising from a dream sculpture

Then travelling through the cold air.

It comes to me;

But when it percolates through my mind,

It feels warmer and

I am then not what I am –

I am a bronze,

I am then not in the world –

I am in the celestial world where

Nothing exists except love and beauty,

I am then not living a life

But drinking immortality

In gloriously maudlin hours.

-Ramesh Tiwari 

Saturday 26 November 2016

स्वच्छ भारत अभियान पर एकांकी

पहला दृश्य
(शहर का एक मोहल्ला जो पूरे शहर में एक आदर्श बस्ती के रूप में जाना जाता है सभी मोहल्ला वासी अपने-अपने घरों की तथा आस-पास की सफाई के प्रति पूरी तरह जागरूक हैं सॉफ-सुथरी गलियाँ हैं और नालिया कहीं भी चोक नहीं हैं किसी भी दीवाल पर कहीं एक धब्बा या धूल नज़र नहीं आती सार्वजनिक जगहों जैसे पार्क, स्कूल इत्यादि मे सुलभ शौचालय उपलब्ध हैं सभी अच्छे कपड़े पहनते हैं और मेहनत से अपने व्यवसाय में लगते हैं ताकि किसी प्रकार के आभाव का सामना न करना पड़े सुबह का समय है उसी मोहल्ले की एक गली है जिसमें मोहल्ले का ही एक युवक जिसका नाम प्रतीक है अपनी मोटर साइकिल से गुजर रहा है इतने में अचानक एक छत से निकली एक पाइप से पानी की धारा नीचे नाली में गिरती है और छीटें उछलकर उसके कपड़े गन्दा कर देती हैं वह अपनी बाइक को एक किनारे खड़ा कर देता है )
प्रतीक : (ऊपर देखते हुए) ओय भल्लू, तू कभी नहीं सुधरेगा आ देख, मेरे नये कपड़ों की क्या हालत हुई है आज वैसे भी देर से हूँ अब बता अपने काम पर समय से कैसे पहुचूँ ?
भल्लू : (अपने छत से नीचे देखते हुए) परती, तू बहुत बोलने लग गया है ! तुझे नहीं मालूम कि गली में देख-सुन कर सावधानी से चलना चाहिए
प्रतीक : हमें देख-सुन कर चलना चाहिए और तुझे दीवाल से लगी नाली तक पाइप नहीं लगानी चाहिए, यही न ? इधर से कभी कोई तेरे से भी अधिक दबंग निकला न, तो तेरे दाँत तोड़ेगा ! तब तुझे सब समझ आ जाएगा  
भल्लू : बदजुबानी मत कर जा कपड़े बदल कर आ और हाँ, अब आँख खोलकर चलना सीख ले
(प्रतीक अपनी मोटर साइकिल घूमता है और वापस घर लौट जाता है )
दूसरा दृश्य
(दोपहर का समय है भल्लू अपने दोस्त से बात करते हुए मोहल्ले के एक स्कूल के सामने से गुजर रहा है भल्लू मुश्किल से बोल पा रहा है क्योंकि उसका मुँह गुटखा मसाला से पूरी तरह से फूल चुका है अचानक वह लापरवाही से सिर घुमाता है और बगल में थूक देता है संयोग से उधर प्रधानाध्यापक महोदय गुजर रहे होते हैं उनकी पैंट वर्वाद हो जाती है और विधयालय का स्वच्छ फर्श वेशक्ल हो जाती है )
प्रधानाध्यापक : भल्लू, तू इस मोहल्ले का कलंक है । तुझे ईश्वर नहीं सुधार सकता तो मेरी क्या मज़ाल । अब बताओ बच्चों को कैसे पढ़ाऊं और ड्यूटी के समय कहाँ जाऊं ?
भल्लू : गुरुजी, माफ़ करना क्या हुआ, ये मसाला बोलने नहीं दे रहा था
प्रधानाध्यापक : फिर मसाला क्यों खाते हो ? इसे खाना छोड़ दोगे तो क्या हो जाएगा ! लोग तुम्हारी फ़ज़ीहत कर देते हैं इसमें तुम्हें बुरा नहीं लगता
भल्लू : गुरुजी, आपने कभी इसे खा कर नहीं देखा मेरे पास कई सारी पाऊच हैं, कहिए तो आपको दूँ एक बार भी खाए न तो छोड़ना तो दूर इसे कभी भूल भी नहीं पाएँगे ! अरे हाँ, गुरुजी, आइए मैं नल चलाए देता हूँ ।  
प्रधानाध्यापक : तू एक काम कर मेरी चिंता छोड़ और यहाँ से जा तेरे मुँह लगना किसी के लिए ठीक नहीं
(भल्लू और उसका दोस्त फिर से बातें करते हुए आगे बढ़ जाते हैं )
तीसरा दृश्य
(एक दिन शाम को भल्लू कहीं से लौट रहा था मोहल्ले के एक दीवाल के सामने लघु शंका के लिए खड़ा हो जाता है उधर से गुजरने वाले पुरुष महिलाएँ अपना मुँह मोड़ लेते और निकल जाते उसी समय शिव प्रसाद चाचा अपनी टेन्नी टेकते हुए वहाँ पहुचते हैं
शिव प्रसाद चाचा : भल्लू, तुझे शर्म नहीं आती ! तेरी ही माँ बेटियाँ इधर से गुजरती हैं । थोड़ी दूर ही शौचालय है, जा नहीं सकता था !
भल्लू : (चाचा के पास आता है) चाचा, अपना हाथ लाओ तो ।
शिव प्रसाद चाचा : क्या करेगा ?
भल्लू : सूरज डूबने को है । आप इधर-उधर कहीं गिर पड़े तो । चलो मैं घर छोड़ कर आता हूँ ।
शिव प्रसाद चाचा : तू बहुत शैतान है । रोज देखता है मैं इतने समय थोड़ा घूमता हूँ ।
भल्लू : चाचा, हाँ, आपको बताना भूल गया, आज सुबह मंदिर में मैने झाड़ू लगाया था ।
शिव प्रसाद चाचा : झूठ बोल रहा है इतना नेक तू कहाँ हो सकता है । खैर, जा इन खंभों की लाइट जला दे ताकि मैं थोड़ी देर और घूम सकूँ ।
(भल्लू स्ट्रीट लाइट जलाता हुआ चला जाता है और अगली गली में मुड़ जाता है )
चतुर्थ दृश्य
(भल्लू की पत्नी, देवी, टोकरी में कूड़ा भर कर अपने छत पर जाती है वह अपने और अपने पड़ोसी के घर के बीच की गली में कूड़े को फेकती है चूँकि हवा चल रही होती है इसलिए कूड़े का कुछ भाग पड़ोसी के आँगन में जा गिरता है इस पर पड़ोसी की पत्नी, माधवी, भड़क उठती है )
माधवी : देवी, तूने कभी सोचा है कि तेरे नाम का मतलब क्या होता है ?
देवी : तू बड़ी पढ़ी-लिखी है तू ही बता दे क्या होता है !
माधवी : तेरे नाम का मतलब वो नहीं है जो तू कर रही है । देख कितना कूड़ा मेरे आँगन आ गया है । तेरे जैसे पड़ोसी की वजह से लगता है कि कहीं और जाकर बसना पड़ेगा ।
देवी : ठीक है तो जा । कितने रुपये लेगी अपने इस मकान का ?
माधवी : अपने मकान का प्लास्टर तो करा नहीं सकती - मेरा मकान ख़रीदेगी ! केवल तेरा ही मकान एक ऐसा है जो पूरे मोहल्ले की नाक कटवाता रहता है ।  
(ऊपर कहासुनी सुनकर भल्लू छत पर आता है )
भल्लू : (छत की रेलिंग पर झुकते हुए) भाभी, आज इतना नाराज़ क्यों हो ?
माधवी : अपनी महादेवी की करतूत देखो, कितना कूड़ा मेरे आँगन में फेक दिया है ।
भल्लू : भाभी देख सब तो अपने बस में है ये हवा, पानी, आग भी क्या अपने बस में है देवी भला ऐसा क्यों करेगी ? वो तो हवा ने कूड़े को उधर धकेल दिया है भाभी एक काम कर, चल हम दोनो मिलकर हवा से लड़ते हैं कि उसने ऐसी शरारत क्यों की है
माधवी : भल्लू, तुझे ठीक करने की दवाई किसी के पास नहीं है
(ऐसा कहकर माधवी अपने आँगन में झाड़ू लगाने लगती है ।)
पंचम दृश्य
(सूरज उगने को है भल्लू अपना गेट खोलता है तो देखता है कि कूड़े का एक पहाड़ सामने पड़ा है और मोहल्ले के सौ पचास युवक अपनी टोकरी हाथ में लिए वापस लौट रहे हैं ।)
भल्लू : तुम लोग कहाँ लौटे जा रहे हो ? मेरा दरवाजा क्या कोई कूड़ा खाना है ?
युवकों की भीड़ : तो क्या सारा मोहल्ला नगर पालिका है ?
भल्लू : क्या मतलब ?
एक युवक : यही कि तुम करो तो रासलीला ! हम तुम्हारी फैलाई गंदगी को साफ करने के लिए हैं ?
दूसरा युवक : भल्लू, हम लोग कूड़ा तब तक तुम्हारे दरवाजे पाटते रहेंगे जब तक तुम सारे मोहल्ले वालों से माफी नहीं मांगोगे और अपनी हरकत सदा के लिए छोड़ने का भरोसा नहीं दिलाओगे
भल्लू : चल जा ! देखते हैं कल तुम लोग कूड़ा यहाँ कैसे ढेर करते हो ।
तीसरा युवक : पहले इसको हटाओ फिर कल सुबह भी देख लेना
(इतना कहकर सारे लोग अपने-अपने घर लौट जाते हैं भल्लू टोकरी फावड़ा लाता है और कूड़ा हटाना शुरू करता है कूड़ा ढोते, ढोते वह थक कर चूर हो जाता है थोड़ा विश्राम करने के पश्चात वह स्नान करता है शाम को पूरे मोहल्ले के हर घर को जाता है और सबको भरोसा दिलाता है कि वह भविष्य में साफ-सुथरा एक अच्छे इंसान के रूप में रहेगा, अतः लोग अगले दिन उसके दरवाजे कूड़ा नहीं ढेर करेंगे )
लेखक - रमेश चन्द्र तिवारी

शुक्रवार, 25 नवम्बर 2016