निकली है वान्ट
इस व्यंग्य रचना को मैने १० जून १९८८ को लिखा था तथा यह तरुण छत्तीसगढ़ में १६ जुलाई १९८८ को प्रकाशित भी हो गयी थी | मेरा बेरोज़गार दोस्त भागते हुए आया हाँफ़ते-हाँफ़ते उसने बताया यार , निकली है वान्ट ! अरे! मैने कहा तू हो जा शांत | उसने कुर्सी खींची बैठकर बढ़ती साँस रोकी | फिर बोला , लीडरों के पद भारी मात्रा में हैं रिक्त और अपने लिए हैं बिल्कुल उपयुक्त | उमर में जिंदगी भर की छूट , चलो दो पद लावें लूट | इसमें चूके तो रहोगे भूंखे क्योंकि हम ओवर ऐज हो चुके | रही योग्यता की बात पढ़ता हूँ पेपर है साथ | शिक्षा में : चलेगा पहला अक्षर फेल बस चाहिए अनुभवों का तालमेल | अनुभव – न्यूनतम : किसी मान्यता प्राप्त जेल में बिताएँ हों दो वर्ष , अस्पताल में पौन वर्ष | अनिवार्यता : होना ज़रूरी है फोकटी कार्यकर्ता , मुख्य रूप से , जिससे इलाक़ा हो डरता | वरीयता : अगर है अभिनेता तो मिलेगी वरीयता | हो दुर्नाम या बदनाम बस नाम होने से काम | आवेदन विधी : है बिल्कुल सीधी नाटकीय आँसू बहाने का , परिमार्जित झूठ बोलने का , उत्तम डींग ...