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देश-प्रेम, अनुश्री से

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 कुछ तथाकथित धर्म-निरपेक्ष विद्वानों का मानना है कि राष्ट्रीयता की भावना किसी भी देश के लिए हितकारी नहीं है । इस कविता के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि उनकी सोच सदैव सही नहीं है । 12 अगस्त 1988 देश-प्रेम वह शक्ति श्रोत है जिसका कोई जोड़ नहीं, इसके सम्मुख टिक सकते हैं बम गोलों के होड़ नहीं । प्रगति किया है राष्ट्र किसी ने इससे ही प्रेरित होकर, जीता है यदि युद्ध किसी ने इससे उनमादित होकर । रक्षक, प्रहरी सब के सब इससे ही उर्जा पाते हैं, इसकी ज्वाला के वगैर जीवन दीपक बुझ जाते हैं । आज देश जो आगे हैं या जिनकी हनक गूँजती है, इसी चने के बल पर उनकी बाहें सदा फड़कती हैं । इस मक्खन को खाकर हमने अच्छा स्वास्थ्य बनाया था, किसी विदेशी का प्रहार तब हम पर नहीं विसाया था । इसी ने हमको जोश दिया तब सीना हमने तान दिया, पराधीन भारत ने फिर से 'जन गण मन' का गान किया । जब जब मदिरा देश-प्रेम की पीना हमने छोड़ा है, किसी विदेशी के सम्मुख तब घुटने हमने टेका है । स्वार्थ, ईर्ष्या के कोहरे में फिर से दिशाहीन हैं हम, मक्कारों के फन्दो में अब फँसे हुए फिरसे हैं हम । भय लालच मजबूरी में ज