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मानव मर चुका है

मानव मानव नहीं वह तो भयानक दानव है ! वह चिड़िया खा जाता है , जानवर खा जाता है , गाय बैल खा जाता है , चींटी , साँप , छिपकली खा जाता है | उससे जलचर , थलचर , नभचर सब प्राण बचाकर भागते है क्योंकि वह सब खा जाता है | और तो और मानव मानव को हजम कर जाता है , वह अपने ही भाई - बंधुओं की थाली उठाकर भाग जाता है , वह माँ , बहनों की इज़्ज़त से खेलता है , मक्कारी के फन्दे फेकता है ,   अच्छा बुरा कुछ नहीं देखता , बस अपनी ही रोटियाँ सेकता है | उसके लिए न ईश्वर है न अल्लाह है – वह तो उन्हें शरेआम बेचता है | उसके हृदय में मोहब्बत सूख चुका है , घृणा , स्वार्थ के शोलों से दिल धधक रहा है , वह प्रेत है , प्रेतात्मा है मानव मर चुका है |