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Showing posts from October 11, 2015

सच या क्या वह सपना था ?

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नायक नायिका से बहुत दूर होने के कारण उसके प्रेम में अत्यंत व्याकुल है । एक रात वह किस तरह प्रणय क्रीड़ा की स्नेहिल कल्पना करता है इसका चित्रण करते हुए इस कविता की रचना मैने 15 मई , 1988 को की थी । कभी दौड़ता रुकता चलता कभी बैठ क्यों जाता है ? हँसता कभी विहँसता क्यों मदमस्त हुआ क्यों जाता है ? मन ही मन तू बातें करता बुनता - गुनता तू क्या है ? निशा ने पूछा पगले वायू हुआ आज तुझको क्या है ? मन्द-मन्द मुस्कान बताती तू कुछ छिपा रहा है । पवन बता क्या प्रिया पुष्प का तेरा मिलन हुआ है । प्रतिउत्तर में कुछ कहकर दीवाना वह भग जाता था , झूम-झूम औ घूम-घूम सर-सर करके इतरता था । ऐसे में वह सोया था क्षणदा के आँचल को ढक के । परी लोक में खोया था निद्रा मदिरा को पी करके । सहसा एक आगंतुक के आने का आहट हुआ उसे । दबे पाँव से खोज रही न जाने थी वह वहाँ किसे । इधर-उधर कुछ देखा ढूँढा अन्त में आई उसके पास । आलिंगन कर सौप दिया फिर अपना सब कुछ उसके हाथ। अरे , अरे! यह कौन आ गया हुआ चकित वह उसको देख , इस रजनी मे...