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मनुस्मृति

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         पूज्य गुरुदेव स्वामी परमानन्द जी महाराज कहते हैं कि हमारा शरीर हिन्दू है जिसके प्रमुख चार अंग हैं: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र अर्थात शीश, हाथ, पेट और पैर | अब यदि पैर में काँटा चुभ जाय तो क्या हाथ उसे निकालने से इन्कार करेगा या काँटा कहाँ चुभा है उसे देखने से आँख इन्कार करेगी ? क्या पेट सारे शरीर का पोषण नहीं करता ? शीश का कार्य सारे शरीर की सुरक्षा, उसकी देखभाल, और जो भी उसके लिए उचित है उसका मार्ग दर्शन करना होता है | क्या वह कभी किसी अंग के लिए पक्षपात करता है ? कौन ऐसा संगठन है जिसमें विभिन्न वर्ग नहीं हैं ? एक कार्यालय में लोग विभिन्न पदों पर कार्य करते है – न तो सभी अधिकारी हैं और न ही सभी कर्मचारी | पैर में कहीं चोट लग जाती है तो सारा शरीर उसे आरक्षण की विशेष सुविधा देकर उसे स्वस्थ करता है | इसी तरह यदि मस्तिस्क विगड़ता है तो उसका इलाज होता है | एक अंग को स्वस्थ करने के लिए बाकी सारे अंग सहयोग करते हैं | हिन्दू क्षत-विक्षत है क्योंकि राजनीति ने मनुस्मृति के सिद्धांतों का तिरस्कार कर दिया है | उसमें जब तक एकात्मकता का भाव नहीं आएगा, उसका एक अंग दूसरे अंग से घ