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Showing posts from September 13, 2015

गणपति बाप्पा मोरया

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The entities that make a universe take shape and grow and in doing so they need something to live on. This need is the mother of business which is symbolized as Bhagwan Ganesh. Now then, you might think different things have different requirements, but a set of entities in which members have similar characteristics may share the same thing. Moreover, there are numerous groups of related species, each with a large number of members, in the universe. Such members often try to achieve the same sorts of things the same time, and as a result make competitors or rivals. Now where there are rivals, there is clash and war. Mahaprabhu Hanuman Ji is the god of war. Business and war are the functional outcomes of the universe, so Hanumanji Maharaj and Bhagwan Ganesh are considered as the sons of Mahadevas and Mahadevies. Since they bring forth change and this function involves both power and wisdom, they are not only prominent gods but also considered as the most powerful and intelligent of all

Happy Birthday to Sri Narendra Modi, the Prime Minister!

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I wish a happy Birthday to the Prime Minister who has endeared himself to his fellow countrymen, who has a lot of real love for the whole country and who lives not for living a life but for the sake of the nation as Chandra Gupta Vikramaditya did! I would like to present him with a nice little poem.   The mother is happy to give birth to a wonderful son Because her baby boy later engaged the attention of his second mother, Who watched him carefully and started nourishing His talents and his power to invent. The child never ever disappoints her, So she too is happy to give birth to him. This rare boy developed the sea of love in his heart To share with the children of every mother in the country. While others court popularity by presenting themselves As the messiah of a particular community And shrink, as they hold office, from their responsibilities, Laying their loyalties with their family and the people of their own caste, This generous, selfless and wel

हमको आगे बढ़ना है

इस कविता को मैने 05 अगस्त सन 1988 को लिखा था | हम हैं आकुल बढ़ने को मत रोको हमें भागने दो देखो लोग बहुत हैं आगे हमको वहीं पहुँचने दो । रहने दो अब बहुत हो चुका बहुत विराम किए अब तक धिम्मड़ और फिसड्डी बनकर और जियेंगे हम कब तक । नहीं लेंगे शिक्षा जाओ काहिलपन का ज्ञान न दो बार-बार संतोष सिखाकर हमें निष्क्रिय न कर दो । रख लो अपने पास पुराना कालातीत धर्म अपना स्वयं कथाएँ कह सुन करके देखो तुम ही सुख सपना । मज़हब जीवन की पद्ध्यति है और नहीं वह कुछ करता स्वर्ग नर्क का भय पैदाकर केवल अनुशासित करता । परिवर्तन से बचा नहीं है वस्तु कोई सारे जग में धर्म निहित क्या नियम समझते नहीं बदलते हैं उसमें ? लाओ सारे पंथ दिखाओ संशोधन उसमें कर दूं उन्नति नाम आज से प्यारा लाओ उनका मैं रख दूं । सतत अग्रगामी रहना उत्साह बढ़ाते ही जाना एक पंक्ति भर सकती पूरा उसके पालन का खाना । जाती वर्ग के भेद लिखे हैं उसे काट डालूं लाओ भारतीय बस लिखूं वहाँ पर सिंधु बूँद में ही पाओ । देव फरिस्तो का होगा जिस जगह विशद मिथ्या वर्णन वहाँ लिखेंगे देश देवता उसका ही

राह मिल न सकी

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इस गीत को मैने 25 अगस्त , 2010 को लिखना प्रारम्भ किया था | उस दिन मैने दो पद्य लिखकर छोड़ दिए थे । आज रविवार , 13 सितम्बर 2015 को संयोग से वह पूरा हुआ है । राह मिल न सकी मैं भटकता रहा बादलों की तरह । छाँव भी थी वहाँ , पेड़ झुर्मुट भी थे , फिर भी भुनता रहा पत्थरों की तरह । नदियाँ भी थीं , नद सरोवर भी थे , फिर भी प्यासा रहा नभ-खगों की तरह । राह मिल न सकी मैं भटकता रहा बादलों की तरह । एक अपना यहाँ , एक सपना वहाँ , द्वंद के बीच में चीखता ही रहा । हाथ खोले हुए बाग फूलों के थे , गीत रेतों की खाई में गाता रहा । राह मिल न सकी मैं भटकता रहा बादलों की तरह । गिरता रहा , फिर संभलता रहा , कंकड़ों की डगर किंतु चलता रहा । खिलखिलाते रहे वे सितारे सभी , भोर तारा अलग टिमटिमाता रहा । राह मिल न सकी मैं भटकता रहा बादलों की तरह । अब किनारा यहीं बस निकट है कहीं , लक्ष्य निश्चित हुए बिन सफ़र कट गया । कितनी वर्षा करो तप्त मानस पे तुम , लौ बुझेगी नहीं जो जली है सदा ।   राह मिल न सकी