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Showing posts from December 20, 2015

धर्म

मैने ऐसे बहुत से लोगों के विचार सुने हैं जो धर्म के नाम से चिढ़ते हैं | किंतु यदि उनकी भावना को झाँकें तो लगेगा कि उनकी यह प्रतिक्रिया ग़लत नहीं है क्योंकि आज या कभी भी धर्म के नाम पर समाज का जितना भला हुआ है उससे कहीं अधिक नुकसान हुआ है | अब देखना यह है कि सांप्रदायिकता या सांप्रदायिक हिंसा का कारण धर्म है या उससे जुड़ी कोई दूसरी चीज़ जो निरन्तर घृणा का कारण बनती रही है | अब यहाँ पर ज़रूरत है यह जानने की कि धर्म है क्या | संस्कृति में धर्म की सबसे पूर्ण और सटीक परिभाषा है: ‘धारयेति इति धर्मः’ अर्थात जो धारण करने (अपनाने) योग्य है वही धर्म है | या यह कह लीजिए कि वह सब कुछ करना धर्म है जो अपने सहित सबके लिए कल्याणकारी हो: जैसे सहायता करना, सेवा करना, सत्य बोलना, दया करना, मिलजुल कर रहना आदि, आदि | यहाँ हम इस तथ्य पर पहुचते हैं कि धर्म मानवताबादी कार्यों की वकालत करता है जो किसी भी सूरत भेद-भाव उत्पन्न नहीं करता और न ही उसके पालन में किसी तरह की हिंसा की कोई गुंजाइश है | फिर क्यों धर्म के नाम पर सदभावना समाप्त होती है और हिंसा भड़क जाया करती है ? इस प्रश्न का उत्तर निकालने पर यदि विचा...