Thursday 8 April 2021

मरना हुआ घिनौना



दुनिया भटक गई है,
मशीनों में फँस गई है ।
पढ़े-लिखे दरिंदों के फेर में,
जिंदगी लटक गई है ।


बाहर चमक दमक है,
अन्दर कोढ़, सड़न है ।
मरना हुआ घिनौना,
अब तो जीना एक कुढन है ।


जल में, वायु में, अग्नि में
कीटाणु पनप गए हैं ।
धरती करती है बज बज,
गंध के छल्ले घुमड़ रहे हैं । 

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