बिहारी लाल
अवधी भाषा के इस सवैया छन्द को अनुश्री - कविताएं से लिया गया है। अनुश्री पढ़िए और ऐसी सैकड़ों कविताओं का आनंद लीजिये : नंदनन्द के धाम अनंद महा, बहु भाय रही ब्रज की फुलवारी । उठि धाय चलो तहँ को सुसखा, सब जाय रहे पुर के नर-नारी ।। बहु रंग के फूल अनन्त खिले, अलि बृंद अचंभित आज अनारी । मन्द गती की समीर सुगन्धित, कंपित पुष्प लता अरु डारी ।। सर कन्चन थाल में पंकज लै, करपै नव चंचल अंचल डारे । स्वागत हेतु खड़ी हरि के, कछु लाज के कारन घूँघुट काढ़े ।। अवलोकत हूँ खग हूँ न उडें, अति आतुर ह्वे धुनिहूँ न सुनावें । आवत देखि के राधे गोपाल, उतावल ह्वे सुधि-बुद्धि नसावें ।। ~~~~