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Showing posts from August 9, 2015

‘स्वामी परमानंद शिक्षा निकेतन, खंहरिया शुक्ल - बहराइच’

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‘ स्वामी परमानंद शिक्षा निकेतन खंहरिया शुक्ल ’ ने पारम्परिक रूप से 69वें स्वतंत्रता दिवस के राष्ट्रीय पर्व को मनाया | अध्यापकों के संरक्षण में बच्चों ने हाथ में तिरंगा लेकर ' भारत माता की जय ' बोलते हुए एक प्रभात फेरी निकाली | तत्पश्चात जब बच्चे विद्यालय लौटे तब वे राष्ट्र ध्वज के सामने पंक्तियों में खड़े हो गये | विद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष श्री मोहन लाल गोयल ने झण्डा फ़हराया और बच्चों सहित सभी ने राष्ट्र गीत का गान किया | कार्यक्रम के दूसरे चरण में सभी बच्चे कतार से वरामदे में बैठ गये | परम पूज्य सदा स्मरणीय सद्गुरुदेव भगवान स्वामी परमानंद जी महाराज का पूजन करके आरती की गयी | श्री पंकज कुमार शुक्ल के संचालन में बच्चों ने विभिन्न संस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए | अभय कुमार व आदर्श कुमार ने देश गीत प्रस्तुत किया , भैया शुभम व रघुवंश ने हिन्दी में तथा सुनील कश्यप ने आंग्ल भाषा में भाषण दिया , आशीष कुमार मिश्र , कुमारी दिव्या , निशांत , कमल कुमार , साकेत कुमार , रंजीत , रवि शंकर ने गीतों की प्रस्तुति की , श्रीपती , प्रशांत , सुभाष ने देश प्रेम की कविताएँ पढ़ीं , कु

स्वतंत्रता दिवस

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‘ स्वतंत्रता दिवस ’ कविता को मैने 6 अगस्त , 1988 को लिखा था | उस वर्ष स्वतंत्रता की बयालिसवीं वर्षगाँठ थी | कितने लोग चढ़े फाँसी पर कितनों ने गोली खाई कितने हुए शहीद मौत से पूर्व मौत उनको आई । कितने कोड़े खा करके भी तनिक आह तक न निकली लदती गयीं लाश पर लाशें राहें फिर भी न बदलीं । आज़ादी के हेतु उन्होने कितना खून बहाया था कितनी माँ बहनों ने माथे का सिंदूर मिटाया था । ज़रा गौर से सोचो देखो उसकी क्या कीमत भाई प्राण भुनाया बदले में तब जाकर थी वह मिल पाई । स्वतंत्रता की वर्षगाँठ शुभ चलो मानवें मिलकर आज देश प्रेम से उसको सीँचें करें देश पर अपने नाज़ ।                - रमेश चंद्र तिवारी

The Red Glow of the Dawn

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I have just composed ‘ The Red Glow of the Dawn’ , dedicating it to the Finance Minister, Sri Arun Jaitley, and would like to offer this poem to him as a gift on the Eve of India’s 69 th Independence Day.   India needs a Krishna and his brave Parth again  Or a Chandra Gupta with the big Kautilya-Brain When the glassed-in country is not manned, Ambitious Politics has a hammer in his hand, Lawmakers are lawbreakers, priests are cheats, Dream dresses up as a social worker, chastity weeps, Heads and Henchmen harvest the country’s crops, To a lower level everyday ethics in democracy drops. But she, the mother of both the brave and brains, Has already reproduced her two sons all-time greats. The nation believes they will eradicate double agents, Bring the same fair system of our golden governance. Look, there is a dimly visible leaf-shoot and a fountain!   A new life has begun to enter the dried up garden. Stars are turning out behind

नेता प्रतिनिधि की सरकार

‘ नेता प्रतिनिधि की सरकार ’ शीर्षक कविता की रचना मैने 28 अप्रैल 1988 को की थी | यह हिन्दुस्तान में नेताओं की बाढ़ पर एक चटपटा व्यंग्य है | नेता प्रधान यह देश जहाँ नेता से नेता बनता है सच पूछो तो भाई सुन , लो नेता सारी जनता है | दो नस्लों के नेता जिसमें पहला भाषण देता है और दूसरा ध्यानपूवक जमकर उनको सुनता है | दोनो खूब मेहनती हैं वे ड्वूटी तगड़ी करते हैं व्यर्थ समय न जाने देते भाषण देते सुनते हैं | भीख माँगने से लेकरके बड़े-बड़े व्यापारों तक साइड जाब को करते-करते वेचारे जाते हैं थक | लड़ने और लड़ाने में नेता दोनों ही माहिर हैं नीति विदेशी अमरीकी या रूसी सबके काबिल हैं | हिंदू , सिख , मूसलमां सारे सुनने वाले नेता हैं लेक्चर उन्हें सुनाने वाले टोपी धारी नेता हैं | भाषण जब तक देते रहते दंगे नहीं उभड़ते हैं आख़िर थकना पड़ता है तब खून के नाले बहते हैं | सुनो भाइयों सुन लो , नेता फिर भी काफ़ी मद्दे हैं यद्द्यपि की स्टॅंडर्ड उनके बाकी सबसे उँचे हैं | कुत्ता एक भौंकता सुनकर दस और भौकने लगते हैं एक जगह के भाषण से तामुल्क में भा