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Showing posts from September 6, 2015

दर्द काँटों की चुभन का

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इस गीत को मैने ०८ अक्तूबर १९८८ को लिखा था । विश्वास टूटने पर प्रतिक्रिया के भाव हृदय में ऐसे फैलते हैं जैसे अश्रु विसर्जित करने के पश्चात एक अदभुद शान्ति से हृदय तृप्त होता है । एक सुन्‍दर व सुकोमल फूल से दिल फट गया दर्द काँटों की चुभन का कम हुआ । प्यास बुझने की जहाँ उम्मीद थी पास से देखा वहाँ बस धूल थी । प्यार देकर हर जगह नफ़रत मिला दर्द काँटों की चुभन का कम हुआ । एक सुन्‍दर व सुकोमल फूल से दिल फट गया …. ये मौत मुझको तू डरा सकती नहीं जिंदगी है वेरहम ज़्यादा कहीं । दाम में है प्रेम अब विकने लगा दर्द काँटों की चुभन का कम हुआ । एक सुन्‍दर व सुकोमल फूल से दिल फट गया …. विजलियाँ बादल बनाते हैं अगर तो मेरे ये दोस्तों छोड़ो डगर । यह पतिन्गा आज लौ से बच गया दर्द काँटों की चुभन का कम हुआ । एक सुन्‍दर व सुकोमल फूल से दिल फट गया …. -           रमेश चन्द्र तिवारी

The Teacher of Kabir

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My essay ‘The Teacher of Kabir’ was published in Reading Hour, Sept-Oct 2012 Vol 2 Issue 5. “Guru Govind dono khade, kake lagon panya  l     Balihari Guru aapne, Govind diyo bataya ll” When, on a day, the great Guru of Kabir and his Govind came round together to see him, he was in a dilemma about which of them he should make his obeisance first. He had no time to think it over and therefore got nervous. But soon it occurred to him that he is thankful to his Guru, who guided him through the mysterious way to Govind. But in another couplet, Kabir teaches us that “Guru Govind tao eak hai, duja yahu aakar l   Aapa met jeevat maray, tao pavay Kartar ll” Guru and Govind are one and the same. The distinguishable world does not let us see them so. We, being the part of this world, are truth-blind because we cannot identify anything unless we differentiate one thing from the other, but he who crosses this bar like a dead man achieves the Supreme Being. The a

राजनीति

‘ राजनीति ’ की रचना मैने 18 मार्च 1988 को की थी | गावों में है राजनीति शहर में राजनीति राज्य में भी राजनीति व्यापी देश भर में | चाहे स्कूल कारखाना काहे चाहे न हो दफ़्तर हो कोई राजनीति फैली सब में | खेत खलियान हाट-बाट औ दुकान सब धर्म स्थान राजनीति का शिकार है | धर्म औ अधर्म को मिलाय सब एक करि शास्त्र राजनीति का विशाल औ उदार है | देखो हर ओर राजनीति की ही जीत है फिल्मी स्टारों को भी करनी राजनीति है | नीति राजनीति है अनीति राजनीति है धोखा धड़ी झूंठ सांच सब राजनीति है | लुटे हुए लोग कहें चोर औ लुटेरे कहें चोरी कर चोर कहें यही राजनीति है | राजा और राजनीति की यहाँ कमी नहीं प्रजा का आभाव भी तो एक राजनीति है | और देश आगे हैं तो हम कहाँ पीछे हैं माना वे तमाम बार बाजी मार जाते हैं  | राजनीति दौड़ में हमार देश वैसे आगे गोल्ड का मेडल एक हम भी मार लाते हैं  | दंगे औ फ़साद के बेढंगे नंगे नाच देखो गीध देखो लोखड़ी सियार भाँति-भाँति हैं  | गधन के जूता धामें शेर और बाघ देखो अंधे अनुयाइयों की भीड़ तौ अपार है  | जोकर अजीब देखो ज्ञानियों की