दर्द काँटों की चुभन का
इस गीत को मैने ०८ अक्तूबर १९८८ को लिखा था । विश्वास टूटने पर प्रतिक्रिया के भाव हृदय में ऐसे फैलते हैं जैसे अश्रु विसर्जित करने के पश्चात एक अदभुद शान्ति से हृदय तृप्त होता है । एक सुन्दर व सुकोमल फूल से दिल फट गया दर्द काँटों की चुभन का कम हुआ । प्यास बुझने की जहाँ उम्मीद थी पास से देखा वहाँ बस धूल थी । प्यार देकर हर जगह नफ़रत मिला दर्द काँटों की चुभन का कम हुआ । एक सुन्दर व सुकोमल फूल से दिल फट गया …. ये मौत मुझको तू डरा सकती नहीं जिंदगी है वेरहम ज़्यादा कहीं । दाम में है प्रेम अब विकने लगा दर्द काँटों की चुभन का कम हुआ । एक सुन्दर व सुकोमल फूल से दिल फट गया …. विजलियाँ बादल बनाते हैं अगर तो मेरे ये दोस्तों छोड़ो डगर । यह पतिन्गा आज लौ से बच गया दर्द काँटों की चुभन का कम हुआ । एक सुन्दर व सुकोमल फूल से दिल फट गया …. - रमेश चन्द्र तिवारी