मरना हुआ घिनौना
दुनिया भटक गई है, मशीनों में फँस गई है । पढ़े-लिखे दरिंदों के फेर में, जिंदगी लटक गई है । बाहर चमक दमक है, अन्दर कोढ़, सड़न है । मरना हुआ घिनौना, अब तो जीना एक कुढन है । जल में, वायु में, अग्नि में कीटाणु पनप गए हैं । धरती करती है बज बज, गंध के छल्ले घुमड़ रहे हैं ।