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Showing posts from October 18, 2015

My Friend, My Love

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I hate thee, O cruel Life! You shower down every horrid thing on me; You make me run through the fog Of confusion and uncertainty – A race without prize; You force me to bear being stung By the huge crowd of venomous creatures; You set me to learn the practices of mad men; Nay, there... oh I forgot about the blessed friend With whom to enjoy the divine hours of being alone In some remote corner of the sky or among the stars. No, no! I still hate thee, my life. The love of my life is nothing more than a sweet dream. But then again I love thee. Thank you, my little Life, for bringing me The mere thought of my Love. - Ramesh Chandra Tiwari

Dassehra

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Every legend of Sanatana is loaded with symbolic significance. Ravana is symbolic of evil genius; Meghnath of violence and intimidation; and Kumbhkaran of sloth and gluttony. On the contrary, Lord Rama symbolically represents virtues; Laxamana, obedience; and Hanuman ji, immaculate power. Vijay Dashami signifies the end of the reign of terror and the establishment of an ideal world. Today is Dassehra, a Hindu festival which is known as Vijaydashmi – the anniversary of Lord Ram’s victory over Ravana. It is celebrated by burning the effigy of Ravana with a determination to follow the path of messianic Ram, who battled with Ravan for ten days, purging hearts of one vice a day, thus changing the social order completely, with no violence, hatred, anger, envy, temptation, conspiracy, theft, lie, lust and indolence. The air was serene, the conscience clear. “राम राज बैठे त्रयलोका | हर्षित भये गये सब सोका || बयरु न कर काहू सन कोई | राम प्रताप विषमता खोई || नहि दरिद्र कोऊ दुखी न दीना | नहि क...

चुपके से आई

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' सपनों में चुपके से आई ' गीत की रचना मैने २८ मार्च १९८८ को की थी । उन दिनों मैं रायपुर मध्य प्रदेश के नर्मदापारा में रह रहा था । रजनी के आँचल में सब सो गये थे तभी मेरे सपनों में चुपके से आई, फिर धीरे-धीरे अनिल के सलिल पर परी तैरती सी पड़ी हो दिखाई । लो सानिध्य अनुभूति मैने भी पाई तभी मेरे सपनों में चुपके से आई । आ जा, तू आ जा, मेरे पास आ जा, उड़ना तुझे, आ जा री, मैं सिखाऊँ ! जी में उमंगें उठी उड़ चलूं मैं तेरे साथ हो के कहीं दूर जाऊँ । पर कोशिशों ने निराशा जताई तभी मेरे सपनों में चुपके से आई । काले दुशाले पे तारों की बुटें युगल शून्य जगती थे सोए उसी में । भूतल हृदय पर मैं दौड़ता था तू उज्जल परी सी थी फिरती गगन में । आतुर दृगों ने धीरज गँवाई तभी मेरे सपनों में चुपके से आई । अंबर का प्रेमी हृदय मानों मैं था धरती के दिल की तू भी मूर्ति थी, हम एक के दूसरे में पिरोए हुए प्यार की भावना जोड़ते थे । अचानक मेरी चेतना लौट आई तभी मेरे सपनों में चुपके से आई । नयनों ने खोजा तुझे फिर न पाया अधूरी रही बात होनी दिलों में, झूठा था सपना मैं जानता था फिर भी था उलझा कुछ ढूँढ...