अवधी बोली साहित्य में ग्राम्य दर्शन
The following article by me was broadcast on All India Radio, Lucknow on 22 Oct 2019 at 6.20 pm. अवधी हिन्दी की एक उपभाषा है । यह उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में कई रूपों में बोली जाती है, जैसे: पूर्वी, कोसली, पश्चिमी, गांजरी, बैसवाड़ी आदि । क्षेत्र के हिसाब से अवधी को तीन भागों में बाँटा जा सकता है : लखीमपुर-खीरी, सीतापुर, लखनऊ, उन्नाव और फतेहपुर की बोलियां को पश्चिमी, बहराइच, बाराबंकी और रायबरेली की बोलियां को मध्यवर्ती और गोंडा, फैजाबाद, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, जौनपुर और मिर्जापुर की बोलियाँ को पूर्वी । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे देसी भाषा की संज्ञा दी है । अवधी के प्राचीनतम चिन्ह सातवीं शताब्दी से मिलते हैं जिसे प्रारंम्भिक काल के नाम से जाना जाता है । इसकी अवधि 1400 ई. तक माना गया है । विद्वानों ने इसका मध्यकाल- 1400 से 1900 तक तथा आधुनिक काल- 1900 से अब तक माना है । अवधी के मध्यकाल को इसका स्वर्ण काल कहा जा सकता है क्योंकि इसी दौरान प्रेमाख्यान काव्य व भक्ति काव्य दोनों का विकास हुआ। प्रेमाख्यान का प्रतिनिधि ग्रंथ मलिक मुहम्मद जायसी रचित ‘पद्मावत’ है, जिसकी रचना ‘र...