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अनुश्री

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मेरी नयी पुस्तक 'अनुश्री' शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है । उसकी एक कविता मैं यहाँ शेयर कर रहा हूँ : आदमी को अगर आदमी चाहिए, बीच में फ़ासले की कमी चाहिए । पैरों के नीचे जमी चाहिए, सरहदों की लकीरें मिटी चाहिए । चाहो कि प्यासा मरे न कोई, सभी धर्म-दरिया मिली चाहिए । गैर कहना समझना भुला डालिए, तो मिलेंगे तुम्हारे कहीं जाइए । आदमी को अगर आदमी चाहिए, बीच में फ़ासले की कमी चाहिए । अपनी शकल दूसरों में दिखे, तो दिलों की निगाहें खुली चाहिए । ये दुनिया मोहब्बत भरी चाहिए, आँख में आसुओं की तरी चाहिए । दूध सा ये है महफ़िल मेरा दोस्तों, दुश्मनी की खटाई नहीं चाहिए । आदमी को अगर आदमी चाहिए, बीच में फ़ासले की कमी चाहिए । घर घर में रोटी नमक चाहिए, तो गरीबों पे थोड़ी तरस खाइये । चाहते हो जहां देखना खूबसूरत, जुबाँ की मिठाई फ्री चाहिए । खुशियां ही खुशियां तुम्हें चाहिए , एक तेरी हमें बस हँसी चाहिए । आदमी को अगर आदमी चाहिए, बीच में फ़ासले की कमी चाहिए । किन्तु विध्वंस परिणाम संघर्ष का, विध्वंस ही श्रोत निर्माण का । होता है संघर्ष होता रहेगा, भड़कता है मानव भड़कता रहेगा ।