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Showing posts from November 18, 2018

ढोल, गंवार, सूद, पशु, नारी...

रामचरित मानस विश्व का निष्पक्ष, निर्मल, सम्पूर्ण व् मानव कल्याणकारी ग्रन्थ है । पूर्वाग्रह से ग्रस्त कुछ लोगों को इस पवित्र महाकाब्य की एक चौपाई पर आपत्ति है : ढोल, गंवार, सूद, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी । इस चौपाई में दण्ड की मात्रा ढोल का उदहारण देकर बताई गयी है । हमारी परंपरा के अनुसार ढोल को हाथ से बजाकर संगीत निकाला जाता है न कि डंडे से । अर्थात हाथ से जितनी चोट ढोल पर की जाती है उतनी चोट देकर उन्मत्त गंवार, सूद, पशु या नारी को अनुशासित करने के लिए किया जाना अनिवार्य है । हमारी भाषा में अशिक्षित को गंवार कहा जाता है । सूद का तात्पर्य उस व्यक्ति से होता है जिसमें ईश्वर का भय नहीं होता है परिणामस्वरूप वह अनियंत्रित होता है या सामाजिक मर्यादाओं का उलंघन करता है । ध्यान रहे यहाँ सूद शब्द से किसी विशेष जाति व् वर्ग से कोई सम्बन्ध नहीं है । हिंदी में स्त्री को महिला, औरत, भामिनी, तरुणी, वनिता, नारी आदि अनेक शब्दों से सम्बोधित किया जाता है परन्तु इसमें प्रत्येक शब्द स्त्री के एक विशिष्ट स्वरुप की अभिव्यक्ति करते हैं । नारी प्रायः उस युवती को कहा जाता है जो कामुकता में विवेकहीन हो...

Real Culprits Wallow in Luxury Chambers

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One more of my short stories ‘Real Culprits Wallow in Luxury Chambers’ has been published in the Criterion. Read it by clicking on to this link: http://www.the-criterion.com/V9/n5/Ramesh.pdf The story represents the society in which corruption and lawlessness are allowed to go unchecked. It reveals how a man full of himself causes problem not only for others but also for himself. And the moral to the story is that prejudice floats on the surface of deep ignorance, so a normal life is possible to have by staying away from it or by expanding the area of generosity and love.