वन-वन ढूँढा घर-घर ढूँढा
ढूँढा हर फुलवारी में ।
मैया तुझको ढूँढ रहा हूँ
आँगन और अटारी में ।
अँखियाँ सूख गयीं है मेरी
दर्शन की लाचारी में ।
पल-पल बीत रहें हैं जैसे
तपती खड़ी दुपहरी में ।
आ जा मैया आ जा मैया
मन की शीतल झाड़ी में !
कर दे सुफल बैठ कर मेरे
जीवन रूपी गाड़ी में ।
No comments:
Post a Comment