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Showing posts from July 19, 2015

पर्यावरण

“ पर्यावरण ” शीर्षक बाल-कविता को मैने 21 मई , 1988 को रचा था | विभिन्न कवि सम्मेलनों में लोगों ने इसकी जमकर तारीफ़ की थी | सिसक-सिसक कर रोती थी , वन के चिड़ियों की रानी पिघल-पिघल दुख गिरता था , आँखों से बनकर पानी | वहीं पास में उसका था , नन्हा सा प्यारा शिशु बैठा दुखी हो रहा वह भी था , माता को देख-देख रोता | मातृ अश्रु को पोंछ-पोंछ कर , बार-बार था पूछ रहा ‘ हे माँ , मुझे बता दे तुझको , कौन कष्ट है बाध रहा ?’ रुँधे गले से फिर वह बोली , ‘ बेटा मैं हूँ दुखी नहीं ’ इस तरह वेदना छिपा रही थी , पर ऐसे वह छिपा नहीं | फूट-फूट कर विलख पड़ी , नयनों में बादल घिर आये जिसका घर हो उजड़ गया , उसको संतोष कहाँ आये | वो हरियाली छाँव निराली , स्वर्गिक वे पत्ते औ डाली छोटे-छोटे गेह घोसले , चूं-चूं ची-ची की खुशियाली | वे कलरव वे क्रंदन कूंजन , झाड़ी में झरनों का झर-झर घने वनस्पति में घुस-घुस कर , वायू का करना वह सर-सर | हाय ! सभी के सभी मिट गये , जंगल के कट जाने से कितने जीवन उजड़ गये , उनकी कुटिया उड़ जाने से | आख़िर में सब बता दिया माता ने अपने

बसंत शुभागमन गीत

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इस गीत को मैने फरवरी 1988 में लिखा था | उन दिनों मैं छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रह रहा था | नव-भारत रायपुर के तत्कालीन संपादक श्री गिरीश पंकज जी ने मेरी इस कविता को बसंत परिशिष्ट में 28 फरवरी 1988 को प्रकाशित किया था | यह मेरी पहली प्रकाशित कविता है | प्रकृति व्यस्त इतना क्यों है निज रूप सुसज्जित करने में ? कुछ नई कला को प्रस्तुत करना चाह रही क्या है मन में ? वन , बाग , सरोवर , खेत सभी फूलों के वैभव से लिपटे , अपने धुन में अपने गुण की वे डींग मारते ही मिलते | झुककर कुसुम पवन से कहती रुक ! तू कहाँ को जाता है ? मेरी मादकता की चोरी कर क्यों , तू मस्ती फैलता है !  सर-सर ध्वनि से चपल वायु भी मुड़कर उत्तर देता यूँ , मैं तो तेरे गुण विखेरकर प्रसनसनीय तुझको करता हूँ | मधुर स्वरों से कोयल कुऊँ-कुऊँ कर उड़ती इठलाती है ,  किसके आने का हर्ष इसे जो पत्तों से इतराती है ? मधूप बृंद भी गुन-गुन करके मत्‍त दशा व्यंजित करते , कारण नहीं समझ आता किसलिए सभी पगले लगते ? सजकर नवल पत्र , फूलों से तरु ऐसे क्यों झूम रहे , हिल-हिल कर ये इधर उधर हैं आपस में मुख

वीरांगना दुर्गावती

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5 अक्तूबर 1524 को रानी दुर्गावती का बांदा में चंदेल राजवंश में जन्म हुआ तथा उनका विवाह गौँड राजवंश के दलपत राय से हुआ | वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था | दस हज़ार राजपूतों की मामूली सेना से गढ़मण्डला की रानी ने मुगल सम्राट अकबर की विशाल सेना को चुनौती दी थी | 24 जून , 1564 को युद्ध में गंभीर रूप से घायल होने के बाद रानी दुर्गावती ने अपने कटार को सीने में घोंपकर आत्म बलिदान कर लिया  था  | और इस तरह अपने सतीत्व व राजपूती धर्म को निभाया |  “ वीरांगना दुर्गावती ” एक ओज भरी वीर रस की कविता है | इसको पढ़ते समय आपका भी हाथ फड़क न उठे तो समझो इसने कुछ नहीं किया | इसको मैने 24 जून , 1988 को रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर लिखा था | दामिनी समान गतिमान , दुतिमान साथ तीर औ कमान एक आन पैदा हो गयी , जिसका कराल विकराल तलवार ढाल रक्त प्यास से बेहाल भूमि लाल कर गयी | दुर्गा प्रचन्ड साथ वती एक और  खण्ड जोड़ के अखण्ड दुर्गावती कही गयी , मुगल महान सम्राट को दिखाने रूप अपना विराट सैन्य मध्य में भटी चली | युद्ध में अनन्त दुर्दन्त बलवंत नहीं पाए खोजे पंथ द