Posts

Showing posts from August 30, 2015

Happy Krishna Janmashtami!

Image
Today is Krishna Janmastami. On this pious day, our great Lord Krishna took birth.  The most adorable character in our greatest epic Mahabharata is called Madan Gopal when he is a child, but as he grows older, we call him Kanha, Kanhaiya, Krishna and then Sri Krishna. He is a loving child, then a mischievous boy, then a warrior, then a politician and lastly a man of high experience and knowledge. He lived a balanced life, mixing duties and pleasure in a perfect and dynamic way, thus teaching us how to live a complete life. He established a Dharm with harmonious, loving and peaceful human relationships on the earth - not a religion stuffed with hypocrisies – killing the entire band of tyrants , like Kansa, Duryodhna, Shishupal, Jarasindhu and all, who were enjoying power and wealth under the mask of values, and freeing people from the fetters of savage rules, injustice and ignorance. Let us celebrate his Happy Birthday, praying for love, light, justice and peace. Happy Janmastam...

व्यग्र व्यथा के बादल

Image
इस छोटी सी कविता को मैने 18 अप्रैल , 1988 को लिखा था तथा आकाशवाणी रायपुर (अब छत्तीसगढ़ की राजधानी) ने अपने युगवाणी कार्यक्रम में इसे 31 अगस्त , 1988 को सायं 5.05 पर प्रसारित किया था | मानस अम्बर में घिरे हुए ये व्यग्र व्यथा के बादल से घोर घटा छा आई है जैसे रजनी का आँचल। रह-रह कर कौंध रही है स्मृति की तीखी विजली क्षण-क्षण निशा दिवस वैसी छटती घिरती कजरी। है घोर गर्जना करता यह निराश मन हारा प्रतिध्वनि से फिर कँपता है हृदय शून्य भी सारा। उत्कंठा आती है बन तीब्र पवन की आँधी आशाएँ थमती ऐसे ज़ंजीरों में हों बाँधी। ये घनी वेदना के घन अविरल घिरते रहते हैं चित्त में रह-रह भारी वर्षात प्रेम की करते हैं। वही नीर वह करके इन दृग द्वारों से गिरते आर्द्र श्याम अलकों को करने को आतुर रहते। बस आ जा इन बाहों में सावन आभास कराऊँ पल-पल कैसे बीते हैं की मीठी कथा सुनाऊं।। -              रमेश चंद्र तिवारी

बता दो मैं कौन हूँ ?

Image
इसको मैने अभी-अभी लिखा है - पढ़ो सोच में पड़ जाओगे ! 02/09/2015 17:32:32 कुछ तो है जो वायु के झोंकों पर स्वेत छाया सी झलमल-झलमल करती आती है ,  चली जाती है   । कुछ तो है जो सूरज की तप्त किरणों से गरे हुए द्रव सी आँसू की बूँदें टपकाती है , चली जाती है । कुछ तो है जो रजनी की छिल्ली पर स्यामल स्याही से लिखे हुए पत्र विखेर देती है , चली जाती है । कुछ तो है जो अम्बर में शून्य सी उभरती है आँखों में आँखें डालकर कुछ कहती है , चली जाती है । क्या यही सब कुछ है जो कुछ नहीं से पूछता फिरता है , ‘ बता दो मैं कौन हूँ , मैं कहाँ से आया हूँ ?' क्या यही सब कुछ है कि किसी कुछ नहीं का सबकुछ उसका कुछ नहीं है यदि है तो नहीं है और नहीं है तो न जाने कहीं है ? -           रमेश चन्द्र तिवारी