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विश्व महाकवि तुलसी दास - जीवन परिचय

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इस कविता की रचना मैने 20 अगस्त 1988 को की थी । राम चरित मानस एक अदभुद महाकाव्य है क्योंकि उसमें मानव जीवन से सम्बंधित प्रत्येक प्रश्नो के उत्तर हैं तथा कोई ऐसा भारतीय ग्रंथ नहीं है जिसका सार इसमें निहित नहीं है । आज ऐसे ग्रंथ के रचनाकार महाराज तुलसी दास जी की जयन्ती है । मैं उनके स्मृति में अपनी श्रद्धा अर्पित करते हुए एक कविता प्रस्तुत करता हूँ जो उनके जीवन और कृतियों पर प्रकाश डालती है । आप इसको पढ़ें, निश्चित ही यह आपको आपके उस महान पूर्वज की याद दिलाएगी जिस पर आपको गर्व है और जिसे सारी दुनिया ने श्रेष्ठतम महाकाव्य के रचनाकार के रूप में स्वीकारा है । पराधीन जनता भारत की त्रसित कई सदियों से थी, धैर्य स्वयं ने धीरज खोया धर्म की जब हर नीव हिली । धैर्य बँधाए ऐसे में था ऐसा कोई व्यक्ति नहीं, बुझते दीपक पुनः जलाने की थी कोई युक्ति नहीं । सनातनो की देख दुर्दशा भगवत का जी द्रवित हुआ, उनकी न्यायपालिका में उस पर विचार भी त्वरित हुआ । राजापुर बांदा में रहता दुबे एक दंपत्ति सुखी, पंद्रह सौ चौवन संबत था श्रावण शुक्ल सत्तमी थी । बारह माह गर्भ का बच्चा माता हुलसी ने जन्मा, अभुक्त मूल में प...