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हमारा किशोर प्रजातंत्र

कोई भी नई व्यवस्था प्रारंभ में कुछ वर्षों तक अच्छे से चलती है | धीरे-धीरे उसमें अवमूल्यन आता है और एक दिन वह इतनी विगड़ जाती है कि अराजकता और आभाव से लोग त्रस्त होकर एक नई व्यवस्था का निर्माण कर लेते हैं | देश आज़ाद हुए और हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था लागू हुए बहुत दिन नहीं हुए | आश्चर्य है कि हमारा किशोर प्रजातंत्र इतना शीघ्र कृशकाय-बृद्ध कैसे हो गया ! पुलिस का उद्देश्य सिर्फ़ जनता से वसूली करना है; मीडिया का उद्देश्य मात्र पैसा कमाना है; न्यपालिका का उद्देश्य लोगों से केवल धन ऐंठना है; और तो और सरकार का भी यही उद्देश्य है | जनता के प्रति जवाबदेही किसी की नहीं ? कहने को जनता सब कुछ है किंतु सत्य यह है कि यह घास की तरह है जिसे कुछ प्रभावशाली जानवर मूर्ख बनाकर चरे जा रहे हैं | स्वतंत्र तो शेर होता है जो निर्भय जंगल में कहीं सो जाता है। जिसमें भय है, मालिक को खुश रखने की जिज्ञासा है वह स्वतंत्र कहां ? लम्बे समय तक गुलामी ने अधिकतर भारतियों के रक्त में पराघीनता घोल दिया है जो सदियों पश्चात ही शुद्ध होगा यदि भारत फिर से गुलाम न हुआ तो। यदि दुनिया में ज्ञान और कौशल की सबसे कम कीमत है तो व