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देश-प्रेम

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  देश-प्रेम वह शक्ति श्रोत है जिसका कोई जोड़ नहीं ,  इसके सम्मुख टिक सकते हैं बम गोलों के होड़ नहीं । प्रगति किया है राष्ट्र किसी ने इससे ही प्रेरित होकर , जीता है यदि युद्ध किसी ने इससे उनमादित होकर । रक्षक , प्रहरी सब के सब इससे ही उर्जा पाते हैं , इसकी ज्वाला के वगैर जीवन दीपक बुझ जाते हैं । आज देश जो आगे हैं या जिनकी हनक गूँजती है इसी चने के बल पर उनकी बाहें सदा फड़कती हैं । इस मक्खन को खाकर हमने अच्छा स्वास्थ्य बनाया था , किसी विदेशी का प्रहार तब हम पर नहीं विसाया था । इसी ने हमको जोश दिया तब सीना हमने तान दिया , पराधीन भारत ने फिर से ' जन गण मन ' का गान किया । जब जब मदिरा देश-प्रेम की पीना हमने छोड़ा है किसी विदेशी के सम्मुख तब घुटने हमने टेका है । स्वार्थ , ईर्ष्या के कोहरे में फिर से दिशाहीन हैं हम , मक्कारों के फन्दो में अब फँसे हुए फिरसे हैं हम ।   लालच व मजबूरी में जिनने भी धर्म बदल डाला उनकी निष्ठा संदिग्ध हुई है कौन नहीं इसको जाना ।   दो मुहे साँप फिरते स्वतंत्र हैं सुंदर इस फुलवारी में , इन्हें कुचलना आवश