जुलाई 18, 2019 को आकाशवाणी लखनऊ द्वारा 'लोक साहित्य में ग्राम्य जीवन' विषय पर मेरी एक भेंटवार्ता प्रसारित हुई थी जिसका कुछ अंश निम्नवत है । इसी तरह 'अवधी बोली साहित्य में ग्राम्य दर्शन' विषय पर मेरे द्वारा प्रस्तुत वार्ता की रिकार्डिंग दिनांक 15 अक्तूबर 2019 को होनी है । यह आपको 22 अक्तूबर को सायं 6.20 बजे आकाशवाणी पर उपलब्ध होगा । 'लोक साहित्य में ग्राम्य जीवन' आज भी हमारे देश की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा परंपरावादी लोगों का है । ये लोग या तो अशिक्षित लोग हैं या अल्प-शिक्षित लोग हैं । ऐसे लोगों द्वारा जो स्वाभाविक साहित्य उत्पन्न होता है उसी को लोक साहित्य कहते हैं । सामान्यतः स्थानीय भाषा में गाये जाने वाले गीत, पचरा, भजन, मांगलिक कार्यक्रमों में प्रचलित सोहर व गारी, विभिन्न ऋतुओं में गायी जाने वाली कजरी, धमाल, बच्चों को सुलाने के लिए कहानियाँ व लोरी इत्यादि हमारे लोक साहित्य के अंग हैं । इस साहित्य में मुख्य रूप से ग्रामीण जीवन का चित्रण मिलता है और हमारी प्राचीन संस्कृति और जीवन शैली को जीवंत प्रस्तुत करता है । यूँ तो लोक-साहित्य का प्रचलन केवल गावों तक ह...