शाश्वत परतंत्रता

मन के तूफ़ानों में तू है,
बन्द, सुप्त पलकों में तू है,
भला बता दे मुझसे तेरा
क्या लेना क्या देना है ।

मिथ्या जीना, मिथ्या मरना,
मिथ्या है जीवन की रचना,
फिर भी पता नहीं है कैसे,
हे प्रिय, तुमसे बचना है ।

भय लगता बाहों में तेरी,
खोल शीघ्र अलकों की बेड़ी,
मुझको न तो जीना है,
न ही मुझको मारना है ।



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