देश की सुरक्षा संस्कृति करती है और संस्कृति की सुरक्षा साहित्य करता है

 


किसी भी देश पर अपना नियंत्रण या तो उससे युद्ध करके किया जा सकता है या वहां की जनता के मन मस्तिष्क को अपनी विचार धारा से प्रभावित करके किया जा सकता है । ग्यारह सौ वर्षों में विदेशियों ने हिन्दुस्तान में दोनों काम किये । परिणाम यह हुआ कि हिन्दुस्तान न केवल तीन भागों में बंटा बल्कि आज इस बचे हुए देश को भी एक सूत्र में लाना कठिन हो गया है । विदेशी विचार धारा के प्रभाव में हमारी संस्कृति नष्ट हुयी है और दूसरी संस्कृति व्यापक स्तर पर फ़ैल गई है । यही वजह है कि एक बड़ी सख्या में लोग देश के प्रति निष्ठावान नहीं हैं और गाँधी परिवार की राजनीति अभी भी देश में जीवित है । संस्कृति की सुरक्षा साहित्य करता है । यदि रामचरित मानस व् भागवत कथा न होते तो आज बची हुयी भारतीय संस्कृति भी समाप्त हो गयी होती । साधु-संतों व् साहित्यकारों का दायित्व होता है कि वे देश के मौलिक विचार धारा की रक्षा करते रहें तभी देश की सत्ता पर देशी राष्ट्रवादी लोग ठहर सकते हैं नहीं तो वही होगा जैसे देश स्वतंत्र होने के बाद भी बुद्धिजीवियों के लिए अपने धर्म व् संस्कृति के विषय में बोलना मुश्किल था । बुद्धिजीवी व् वयस्क की विचारधारा को बदलना कठिन होता है वहीँ अशिक्षित व् किशोरों को सहज ही प्रभावित किया जा सकता है । यदि देश की प्रभुसत्ता को चिर काल तक अक्षुण्य रखना है तो नयी पीढ़ी को अपनी धर्म, संस्कृति व् भाषा से निरंतर शिक्षित करते रहना ही होगा साथ में किसी अन्य विदेशी संस्कृति को पनपने से रोकना ही होगा ।

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