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प्रेम सागर निरंकुश हुआ जा रहा

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इस गीत को मैने 06 सितंबर 1988 को लिखा था । जाग जा री प्रिये यामिनी ढल रही प्रेम सागर निरंकुश हुआ जा रहा । तू तो सोई हुई है तुझे क्या पता ये हृदय ठोकरें किस तरह सह रहा । प्यार की व्यग्र लहरें गरज सी रहीं चित्त का शून्य है गूँजता जा रहा । प्रेम सागर निरंकुश हुआ जा रहा…. मत्त मन गीत गाता भटक है रहा आज अंतःकरण खलभला सा रहा । खोल पलकें बँटा ले व्यथायेँ मेरी मैं इन्हीं हलचलों में कंपा जा रहा । प्रेम सागर निरंकुश हुआ जा रहा…. नींद में और भी डूब तू क्यों रही उर तुम्हारा बता क्या नहीं दुख रहा । धड़कनों की गती तीब्रतम हो गयी देख मानस भवन नीव से हिल रहा । प्रेम सागर निरंकुश हुआ जा रहा…. जाग जा री प्रिये यामिनी ढल रही प्रेम सागर निरंकुश हुआ जा रहा । - रमेश चन्द्र तिवारी