हर चीज़ विकाउ है
विकती सड़क पर लोन, तेल, तरकारी सब, घोड़ा, हाथी, बकरी ख़रीदो हर दाम पर, घर, खेत, खलिहान विकते है हर जगह, औरत ख़रीदो आदमी कम दाम पर | पंडित विकता है, पुजारी विकते यहाँ, सब्जी के भाव भगवान भी विकात हैं | न्याय विकता मंडी न्यायाधीशों की लगती यहाँ, कोर्ट कचहरी की दुकाने खुले आम हैं | बोलियाँ लगाओ नीलामी नेतो की होती यहाँ-वहाँ, घूमों बिग बज़ार यहाँ विधान के सभाओं के, संसद पर नाज़ वह हमारा वालमार्ट देखो, दुनिया का बज़ार आओ विन रोक-टोक के | - रमेश चंद्र तिवारी