Thursday 12 February 2015

भूरा बादल पानी लावे काला बादल...

भूरा बादल पानी लावे काला बादल...

क्षितिज़ पर काले बादल
घनघोर घाटा छा गयी,
थोड़ी ही देर में
दिन में रात हो गयी |
बिजली चमकी
लगा आसमान चिटक गया |
घोर गर्जना से
दिशाओं का दिल दहेल गया,
रेगिस्तान में नदियाँ होंगी,
फटी भूमि डबडबा जायेगी |
सब नाच उठे
उल्लास के संगीत में भूँख भूल गयी |
फिर क्या पश्चिम से हवा आई
पूर्वी क्षितिज़ बादलों को निगल गयी |
सूरज दहेका
हो गया सब जैसा था वैसा |
हफ्तों तक, महीनो तक
शिर्फ भूरे बादलों की आवा-जाही
सूखी आत्मा और सूखी खाई |
यह क्या ! हवा का रुख बदल गया ?
पूरब से झोंका आया
बादलों की पतली झिल्ली से
आसमान ढक गया |
सिर् पर एक बूंद गिरी
सारा शरीर सिहर गया |
यहाँ-वहां बूँदें फिर भीनी वर्षात्
हरी-हरी कोपलें, हरे-हरे पात !   

-          रमेश तिवारी

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