रोटी
दरवाजे पर कातर आँखों से निहारता,
एक टूक रोटी को टुकुर-टुकुर ताकता,
धूल में उलट जाता, दुम हिलाता,
वफादारी की पुं-पुं, फिर पैर चाटता |
अपने भाई को नोच डालता,
प्राण निछावर कर देता –
किसके खातिर ? – बस एक टूक रोटी !
रात जागता थोड़ा सोता मेरा प्यारा मोती |
थर्राता सारा जंगल जब दहाड़ता |
दिल की दीवालें हिलतीं हैं,
खुद भोजन सम्मुख गिर जातें हैं
साहस, दुस्साहस की जड़ें उखाड़ता |
पालता पोषता प्यार से परिवार को,
न सिर् झुकाता है न मुफ्त माँगता है
स्वाभिमान सीने में भरकर
बेफिक्र जीता है सोता है खाता पीता है |
सब जानता है पर हाथ फैलाना नहीं,
जंगल का सम्राट जिसे कौन जानता नहीं !
- रमेश तिवारी
एक टूक रोटी को टुकुर-टुकुर ताकता,
धूल में उलट जाता, दुम हिलाता,
वफादारी की पुं-पुं, फिर पैर चाटता |
अपने भाई को नोच डालता,
प्राण निछावर कर देता –
किसके खातिर ? – बस एक टूक रोटी !
रात जागता थोड़ा सोता मेरा प्यारा मोती |
थर्राता सारा जंगल जब दहाड़ता |
दिल की दीवालें हिलतीं हैं,
खुद भोजन सम्मुख गिर जातें हैं
साहस, दुस्साहस की जड़ें उखाड़ता |
पालता पोषता प्यार से परिवार को,
न सिर् झुकाता है न मुफ्त माँगता है
स्वाभिमान सीने में भरकर
बेफिक्र जीता है सोता है खाता पीता है |
सब जानता है पर हाथ फैलाना नहीं,
जंगल का सम्राट जिसे कौन जानता नहीं !
- रमेश तिवारी
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