Wednesday 11 February 2015

रोटी


दरवाजे पर कातर आँखों से निहारता,

एक टूक रोटी को टुकुर-टुकुर ताकता,

धूल में उलट जाता, दुम हिलाता,

वफादारी की पुं-पुं, फिर पैर चाटता |

अपने भाई को नोच डालता,

प्राण निछावर कर देता –

किसके खातिर ?  बस एक टूक रोटी !

रात जागता थोड़ा सोता मेरा प्यारा मोती |





थर्राता सारा जंगल जब दहाड़ता |

दिल की दीवालें हिलतीं हैं,

खुद भोजन सम्मुख गिर जातें हैं

साहस, दुस्साहस की जड़ें उखाड़ता |

पालता पोषता प्यार से परिवार को,

न सिर् झुकाता है न मुफ्त माँगता है

स्वाभिमान सीने में भरकर

बेफिक्र जीता है सोता है खाता पीता है |

सब जानता है पर हाथ फैलाना नहीं,

जंगल का सम्राट जिसे कौन जानता नहीं !

- रमेश तिवारी

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