Saturday 9 May 2015

हर चीज़ विकाउ है



विकती सड़क पर लोन, तेल, तरकारी सब,

घोड़ा, हाथी, बकरी ख़रीदो हर दाम पर,

घर, खेत, खलिहान विकते है हर जगह,

औरत ख़रीदो आदमी कम दाम पर |

पंडित विकता है, पुजारी विकते यहाँ,

सब्जी के भाव भगवान भी विकात हैं |

न्याय विकता मंडी न्यायाधीशों की लगती यहाँ,

कोर्ट कचहरी की दुकाने खुले आम हैं |

बोलियाँ लगाओ नीलामी नेतो की होती यहाँ-वहाँ,

घूमों बिग बज़ार यहाँ विधान के सभाओं के,

संसद पर नाज़ वह हमारा वालमार्ट देखो,

दुनिया का बज़ार आओ विन रोक-टोक के |



- रमेश चंद्र तिवारी

2 comments:

  1. बहुत अच्छा,वर्तमान व्यवस्था पर एक व्यंग्य !

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