हनुमान जयंती
हनुमान जी महाराज के पिता महाराज केशरी हैं और माता महारानी अंजना हैं | इसके अतिरिक्त उनका परिचय यह है कि वे तीनों महादेवो और तीनों महादेवियों के भी पुत्र हैं इसलिए उन्हें गुणनिधान और मंगल मूरति कहा गया है | जो कोई भी हनुमान जी महाराज को हृदय में बसाता है वह संसार में सुख तो प्राप्त ही करता है साथ ही अंत समय में बैकुंठ धाम में नारायण के दर्शन का आनंद लेता रहता है | महाप्रभु हनुमान जी महाराज का जन्म जेष्ठ मास के पहले मंगलवार को हुआ था | इस मंगलवार को पहला ‘बड़ा मंगलवार’ कहा जाता है | इसी तरह इस महीने में पड़ने वाले सभी मंगलवार को बड़े होने का विशेषण प्राप्त है | अतः मंगल मूरति मारुति नंदन सकल अमंगल मूल निकंदन हनुमान जी की जयंती की सबको ढेरों शुभकामनाएँ !
"बजरंगी तुम्हें मनाऊं सिंदूर लगा लगा के......
तुम्हें राम ने मनाया, लक्षमण ने तुम्हे मनाया
सीता ने तुम्हें मनाया, हलुवा पुड़ी खिला के
बजरंगी तुम्हें मनाऊं, सिंदूर लगा लगा के......
ब्रह्मा ने तुम्हें मनाया, विष्णु ने तुम्हें मनाया
शंकर ने तुम्हें मनाया, डमरू बजा बजा के.....
बजरंगी तुम्हें मनाऊं, सिंदूर लगा लगा के...... "
भगवान की सेवा में जै और विजय ने अपने अपमान की कभी चिंता नहीं की | चारों कुमारों द्वारा घोर राक्षस होने के श्राप से होने वाले अपमान को विना विचलित हुए स्वीकार किया | इसी प्रकार हनुमान जी महाराज में अपरिमिति क्षमता थी लेकिन उन्होने कभी भी अपनी क्षमता का प्रदर्शन नहीं किया | केवल आवश्यकता पड़ने पर लोगों ने जाना कि पवन पुत्र ऐसा भी कुछ कर सकते हैं | उन्होने राम जी की सेवा में बड़े-बड़े कार्य किए लेकिन हर ऐसे कार्य के बाद उनके व्यवहार से ऐसा लगा कि मानों उन्हें पता ही नहीं कि उन्होने जो कुछ किया है वह दुनिया में और कोई नहीं कर सकता | स्वयं नारायण या महादेव के अतिरिक्त इस तरह अहंकार शून्य और कोई नहीं हो सकता | अहंकार दुर्बलता की पहिचान है और नारायण का भक्त कभी दुर्बल नहीं हो सकता | इसके अतिरिकत भगवान की सेवा में अगर कोई अपमानित कार्य भी करना पड़ जाय तो वह अंत में बरदान सिद्ध होता है | यही कारण है जै, विजय और महाप्रभु हनुमान जी भगवान को सबसे प्रिय रहे हैं | गोस्वामी जी कहते है – राम जासू जस आप बखाना | महावीर विक्रम भगवाना || बड़े मंगलवार की सबको शुब्कामनाएँ !
दुनियाँ में केवल नाम मात्र को छोड़कर सभी मजदूरों को मज़दूरी देने में बेईमानी की पूरी कोशिश करते हैं चाहे घर मालिक हो, चाहे समाज मालिक हो या चाहे देश का मालिक क्यों न हो | लेकिन हनुमान जी महाराज ऐसे मालिक हैं जो दूनी मज़दूरी देने के लिए उत्सुक रहते हैं | कोई उनकी मज़दूरी तो करे – छोटे से छोटे काम की मज़दूरी तय है वहाँ | यहाँ तक कि उनके किसी काम में हाथ लगा दिया चाहे पूरा किया या नहीं, पूरे काम की दुगनी मज़दूरी का समझो हिसाब बन गया | हनुमान जी महाराज के पास अक्षय संपदा है | वे एक साथ असंख्य ब्रह्मांडो में अपने सेवकों को मज़दूरी बाँटते हैं | कितने लोग भी उनकी सेवा क्यों न करें सबको मेवा मिलना तय है | बोलो बजरंग बली की जै !!!
शेषावतार लखन लाल जी भगवान के अनन्य भक्तों में से एक थे | उन्होने प्रभु राम जी की सेवा के जो उदाहरण बनाए हैं उसकी नकल किसी के लिए भी असंभव है | राम चरित मानस ने उन्हें एक क्रोधी योद्धा के रूप में प्रस्तुत किया है और यही कारण है कि उन्होने किसी की प्रसंसा कभी नहीं की | अपने भाई भरत लाल जी के लिए उनकी आँखें हमेशा लाल ही रही हैं | राम भक्ति से प्रेरित होकर उन्होने अपने पिता को भी तिरस्कृत करने में कोई संकोच नहीं किया है | भगवान परशुराम की तो उन्होने बोलती ही बंद कर दी | इन सभी तथ्यों के विरुद्ध उन्होने यदि किसी की हृदय से प्रसंशा की है तो वे हैं महाप्रभु हनुमान जी महाराज | 'हनुमान चालीसा' में महाराज तुलसी दास जी कहते हैं : “सहसबदन तुम्हरो यश गावें, अस कहि श्रीपति कंठ लगावें” अर्थात भगवान राम हनुमान जी को गले लगाते हुए कहते हैं कि हे हनुमान, तुम्हारे यश को स्वयं लखन लाल जी भी गाते रहते हैं | अपनी इतनी प्रसंशा को सुनकर भी हनुमान जी महाराज को कोई अहंकार नहीं होता – इसके परे वे भगवान के प्रेम सागर में और अधिक डूब जाते हैं |
आप सक्षम हैं या कमजोर हैं आपके शरीर का आकर इस बात को तय नहीं कर सकता | एक छोटी सी चिड़िया आपसे डरती है क्योकि आपसे वह युद्ध नहीं कर सकती, किंतु यदि बाज वहाँ आ जाए तो चिड़िया ही अपनी सुरक्षा कर सकती है आपकी सारी ताक़त उसे सुरक्षा देने में असहाय है | हाथी एक भारी भरकम जीव होता है लेकिन शेर का कुछ नहीं बिगाड़ पाता यद्द्यपि शेर उसकी सूड के इर्द गिर्द जाने का साहस नहीं कर सकता | शार्क बहुत शक्तिशाली और तेज मछली है लेकिन अगर व्हेल के मुख के सम्मुख पड़ जाए तो उसका अस्तित्व व्हेल में शामिल हो जाएगा | शरीर के अलग अलग आकर में अलग अलग तरह की क्षमता होती है और हर एक की क्षमता अपने क्षेत्र में सीमित होती है | धरती पर जीवों के दो संसार हैं : एक जल के समुद्र में और एक वायु के परन्तु एक संसार का जीव दूसरे संसार में जीवित नहीं रह सकता | अहिरावण नाम का एक दैत्य जल-जीव पाताल अर्थात समुंद्र के जीवों पर राज करता था | वह भगवान राम और लक्षमण को समुद्र के किनारे से उठा ले गया ताकि वह अपने आराध्य देवी को बलि भेट कर सके | हनुमान जी महाराज वहाँ भी पहुँच गये | अन्दर प्रवेश पाने के लिए उन्होने शूक्ष्म रूप धारण किया और जब अहिरावण के डयने उखाड़ने हुए तब उन्होने अपना विशाल शरीर बना लिया | “पैठि पाताल तोड़ि यम कारे अहिरावन की भुजा उखारे . बाँये भुजा असुरदल मारे दाहिने ...“ बचपन में वही हनुमान जी आसमान में अति तीव्र गति से उड़कर जाते हैं और ज्वालामयी सूर्य को निगल लेते हैं | अपने शूक्ष्म और विशाल स्वरूप से सुरसा को मात दे देते हैं | वे पहाड़ भी उखाड़ लेते हैं और शिशु स्वरूप में माता सीता से मिलते हैं | हनुमान जी महाराज की शक्ति किसी सीमा मे प्रतिवन्धित नहीं है इसलिए वे सर्व शक्तिमान हैं |
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