Friday 8 May 2015

शान्ती

इस व्यंग्य रचना को मैने 17 जून 1988 को की |



दुनिया में बढ़ती हिंसा पर
चल रही थी बात
बड़े भैया महाशक्ति के साथ |
हमने कहा, ‘हमारे आपके संबंधों में
हो रहा है सुधार |’
उनने कहा, ‘पाकिस्तान को इसलिए भेज रहे हैं हथियार |
इस तरह हमारे पास हो रहा है जखीरा कम
और आपकी बात मानते आ रहे हैं हम |
अब आप पड़ोसी से मिलिए
और अब उससे बात करके तो देखिए |’
ठीक है करेंगे,’ हमने कहा,
ज़रूर करेंगे
आप हमारे मित्र हैं और हमेशा रहेंगे |
आपको तो मालूम है परोपकार हमारा धर्म है,
दूसरों के लिए मरमिटना ही कर्म है |
हम धर्म, कर्म निभा रहे हैं
आप वाली शान्ती का मानसून बना रहे हैं |
यह दुनिया में फैलेगा
वर्षा का अथक प्रयास करेगा
और हाँ,
चुनाव आदि का पूर्ण नौतपा लगने दो
बची हुई शान्ती का भी मानसून बनने दो |
इस बार एक साथ घना बादल बनकर आएगा
हर रोज शांति वर्षाएगा |
अंततः हम परोपकारी भी पड़ेंगे शांत
जब हमारा हो जाएगा देहांत |'
इतने में एक जो पीछे बैठा था चीखा,
'हिंसा का बाप आज का प्रजातंत्र है
लोग वेवजेह कहते हैं बहुत आतंक है !'
-              रमेश चंद्र तिवारी


2 comments:

  1. Nice composition
    शीत युद्ध के साथ यह बहुत कुछ बयान करता है,जैसे - वैदेशिक रिश्ते ,जो भारत की एक अहम कड़ी रही है और प्रभावित होती रही है.

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  2. आपकी बात तो सही है लेकिन अंतिम दो पंक्तियों को क़ायदे से झाँक कर देखिए |

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