मुंशी प्रेम चन्द – हिन्दी साहित्य में योगदान
'मुंशी प्रेम चन्द – हिन्दी साहित्य में योगदान' शीर्षक की कुंडलियों को मैने ३१
जूलाई १९८८ को रचा था |
पिछले
साप्ताह पुराने कागजों में मुझे उस समय की मेरी रचनाओं की हस्तलिपि मिल गयी जिसे
अब मैं टाइप कर प्रस्तुत रहा हूँ |
काशी के सन्निकट है, पांडेपुर एक
ग्राम,
उसमें एक कुटुम्ब था, कायथ का
गुमनाम,
कायथ का गुमनाम, नाम होना था
आगे,
खुलती है तकदीर, कभी भी नहीं
बता के,
ऊन्निस सौ छत्तीस, विक्रमी संबत
आया,
करने नया सबेर, धनपती रवि उग
आया ||
हिन्दी औ भारत हुए, धन्य, धन्य पुनि
धन्य,
प्रेम चन्द नामक मिला, सेवक उन्हें
अनन्य,
सेवक उन्हें अनन्य, हुए वे
गौरवशाली,
भरा कथा का पात्र, पूर्व था
जितना खाली,
वही बना उपचार, रूढ़ि पीड़ित
समाज का,
छटा अंधविश्वाश, मात्र मुंशी
इलाज था
||
अति प्रिय कायाकल्प है, उनका प्रिय
गोदान,
प्रेमाश्रम या गबन हो, सबके सभी
महान,
सबके सभी महान, रंग भूमी लिख
डाला,
सेवा सदन इत्यादि, उपन्यासों की
माला,
कर्बला सहित संग्राम, प्रेम की
वेदी नाटक,
सबको सब दिख जाय, उन्होने खोले
फाटक
||
नवनिधि प्रेम प्रसून
है, रुचिकर
सप्तसरोज,
प्रेम द्वादशी साथ है, सुन्दर प्रेम
प्रमोद,
सुन्दर प्रेम प्रमोद, प्रकाशित
प्रेम पूर्णिमा,
प्रेम पचीसी आदि, कथा संग्रह
की गरिमा,
लाईं नव-नव क्रांति, कथाएँ
प्रेमचंद की,
सतमाराग पहिचान, सकी तब भीड़
अंध की
||
- रमेश चंद्र
तिवारी
साहित्य अपने भावों से एक दूसरे को जोड़े रखती है.
ReplyDelete