अनुश्री
मेरी नयी पुस्तक 'अनुश्री' शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है । उसकी एक कविता मैं यहाँ शेयर कर रहा हूँ :
आदमी को अगर आदमी चाहिए,
बीच में फ़ासले की कमी चाहिए ।
पैरों के नीचे जमी चाहिए,
सरहदों की लकीरें मिटी चाहिए ।
चाहो कि प्यासा मरे न कोई,
सभी धर्म-दरिया मिली चाहिए ।
गैर कहना समझना भुला डालिए,
तो मिलेंगे तुम्हारे कहीं जाइए ।
आदमी को अगर आदमी चाहिए,
बीच में फ़ासले की कमी चाहिए ।
अपनी शकल दूसरों में दिखे,
तो दिलों की निगाहें खुली चाहिए ।
ये दुनिया मोहब्बत भरी चाहिए,
आँख में आसुओं की तरी चाहिए ।
दूध सा ये है महफ़िल मेरा दोस्तों,
दुश्मनी की खटाई नहीं चाहिए ।
आदमी को अगर आदमी चाहिए,
बीच में फ़ासले की कमी चाहिए ।
घर घर में रोटी नमक चाहिए,
तो गरीबों पे थोड़ी तरस खाइये ।
चाहते हो जहां देखना खूबसूरत,
जुबाँ की मिठाई फ्री चाहिए ।
खुशियां ही खुशियां तुम्हें चाहिए ,
एक तेरी हमें बस हँसी चाहिए ।
आदमी को अगर आदमी चाहिए,
बीच में फ़ासले की कमी चाहिए ।
किन्तु विध्वंस परिणाम संघर्ष का,
विध्वंस ही श्रोत निर्माण का ।
होता है संघर्ष होता रहेगा,
भड़कता है मानव भड़कता रहेगा ।
- Poet Ramesh Tiwari
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