Friday 19 February 2016

देश-प्रेम



 देश-प्रेम वह शक्ति श्रोत है जिसका कोई जोड़ नहीं
इसके सम्मुख टिक सकते हैं बम गोलों के होड़ नहीं ।

प्रगति किया है राष्ट्र किसी ने इससे ही प्रेरित होकर,
जीता है यदि युद्ध किसी ने इससे उनमादित होकर ।

रक्षक, प्रहरी सब के सब इससे ही उर्जा पाते हैं,
इसकी ज्वाला के वगैर जीवन दीपक बुझ जाते हैं ।

आज देश जो आगे हैं या जिनकी हनक गूँजती है
इसी चने के बल पर उनकी बाहें सदा फड़कती हैं ।

इस मक्खन को खाकर हमने अच्छा स्वास्थ्य बनाया था,
किसी विदेशी का प्रहार तब हम पर नहीं विसाया था ।

इसी ने हमको जोश दिया तब सीना हमने तान दिया,
पराधीन भारत ने फिर से 'जन गण मन' का गान किया ।

जब जब मदिरा देश-प्रेम की पीना हमने छोड़ा है
किसी विदेशी के सम्मुख तब घुटने हमने टेका है ।

स्वार्थ, ईर्ष्या के कोहरे में फिर से दिशाहीन हैं हम,
मक्कारों के फन्दो में अब फँसे हुए फिरसे हैं हम । 

लालच व मजबूरी में जिनने भी धर्म बदल डाला
उनकी निष्ठा संदिग्ध हुई है कौन नहीं इसको जाना । 

दो मुहे साँप फिरते स्वतंत्र हैं सुंदर इस फुलवारी में,
इन्हें कुचलना आवश्यक है खोज खोज हर झाड़ी में । 

जिन्हें घृणा है देश-प्रेम से उनका हिन्दुस्तान नहीं,
गद्दारों के लिए समझ लो यहाँ कोई स्थान नहीं । 

फिर से देश नहीं सौपेगा सत्ता नकली लोगों को,
ठीक यही होगा वे जाएँ अपने असली वतनों को ।

आज़ादी से आज़ादी या आज़ादी आज़ादी में,
जाति, धर्म की अथवा क्या आज़ादी काल कोठरी में ?

खाना, पीना, उठना, चलना प्रतिबंधित शदियो से था,
भूल चुके हो, जयचंदों, तब आज़ादी होती थी क्या !

देश-प्रेम में फिर से जिनका हृदय हुआ मतवाला है,
जिनने माँ के श्री चरणो में शीश अर्पण कर डाला है,

इस बीर भूमि पर वही रहेंगे सावधान सब हो जाओ,
मातृ-भूमि के हे कलंक अब तुम सब ज़रा सम्भल जाओ !
                       ~~~~ 
- रमेश तिवारी

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