स्वतंत्रता दिवस


स्वतंत्रता दिवसकविता को मैने 6 अगस्त, 1988 को लिखा था | उस वर्ष स्वतंत्रता की बयालिसवीं वर्षगाँठ थी |




कितने लोग चढ़े फाँसी पर
कितनों ने गोली खाई
कितने हुए शहीद मौत से
पूर्व मौत उनको आई ।


कितने कोड़े खा करके भी
तनिक आह तक न निकली
लदती गयीं लाश पर लाशें
राहें फिर भी न बदलीं ।

आज़ादी के हेतु उन्होने
कितना खून बहाया था
कितनी माँ बहनों ने माथे
का सिंदूर मिटाया था ।

ज़रा गौर से सोचो देखो
उसकी क्या कीमत भाई
प्राण भुनाया बदले में तब
जाकर थी वह मिल पाई ।

स्वतंत्रता की वर्षगाँठ शुभ
चलो मानवें मिलकर आज
देश प्रेम से उसको सीँचें
करें देश पर अपने नाज़ ।
               - रमेश चंद्र तिवारी

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