चंगा भिखमंगा फिरता है


जब ट्रेन देर से आती है
हिन्दुस्तानी टाइम उसे हम बड़े गर्व से कहते हैं |
जब देशी पानर, पिनचिस से ठंडा इंजन चिल्लाता है
जुगाड़ टेक्नालॉजी कहकर हम तब सीना चौड़ा करते हैं |
जब बाबू अपने दफ्तर में मुंह फ़ेरे बैठे दिखता है
हिन्दुस्तानी बाबू है, हम कहते हैं, मेज के नीचे से ही सुनता है |
सुख पाता है हर हिन्दुस्तानी
जब हिन्दुस्तान को गिरी नजरों से देखता है
क्योंकि तब उसे हिन्दुस्तान नहीं दिखता
हिदुस्तान की शकल में दिखती है उसे देश की सरकार |
वाह रे हिन्दुस्तान ! जहाँ
नंगा खुद को नंगा कहकर हंसता है |
चंगा भिखमंगा फिरता है,
स्वाभिमान नाली में बहता है,
स्वावलंब कचरे में सनता है,
राष्ट्र चेतना होली का कॅंडा है,
बस स्वार्थ सिद्धि जीवन का फंडा है
-           रमेश तिवारी

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