एक हथेली कोमल सुन्दर





तप्त भूमि है हवा विषैली 
निर्मम ध्वनि संसार में, 
हृदय हृदय में गरल स्वार्थ का 
धोखा हर व्यापार में । 
एक हथेली कोमल सुन्दर 
सिर सहलाये प्यार से 
नहीं मिली वह कहीं नहीं 
धरणी, अम्बर, पाताल में । 
इतना निराश भी क्यो है, पागल ! 
शीतल द्रुम छाया में बैठ, 
सरिता सलिल प्यार की बहती 
करुणा, अभिलाषा में देख, 
दूर कहीं घाटी से आती 
सुन पुकार पीड़ित मीठी सी । 
परिचित स्वर का स्वर प्रतिउत्तर 
मध्य शैल मालाएँ उँची सी ।
                       - Ramesh Chandra Tiwari

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