जेएनयू
पूंजी ढोने वालों
से
कन्हैया को परहेज
नहीं
‘पूंजी बाद से
आज़ादी’
की अग्नि फिर भी
धधक रही |
दिली दोस्त केवल
वह है
जो न घर न बाहर काम करे
‘भुखमरी से आज़ादी’
का नारा फिर भी
याद करे |
देश बटे
धर्म-जाति में
कन्हैया को एतराज
नहीं
‘जातिवाद से
आज़ादी’
कहना क्या कोई
बात बुरी ?
अपनी जान गवाकर
भी
जो उनको रक्षा
देते हैं
उनको यहाँ
कन्हैया सारे
खुलकर गाली देते
हैं |
निर्दोषों के खून
की होली
जो भी खेला करते
हैं
कन्हैया के दिल
में ऐसे
कुछ खूनी चेहरे
बसते हैं |
कन्हैया कितने
ढोंग करो
कितनों को वर्वाद
करो
सरकार माफ़ कर
सकती है
क्या भारत माँ
झुक सकती है ?
-
रमेश तिवारी
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