व्यग्र व्यथा के बादल

इस छोटी सी कविता को मैने 18 अप्रैल, 1988 को लिखा था तथा आकाशवाणी रायपुर (अब छत्तीसगढ़ की राजधानी) ने अपने युगवाणी कार्यक्रम में इसे 31 अगस्त, 1988 को सायं 5.05 पर प्रसारित किया था |

मानस अम्बर में घिरे हुए ये व्यग्र व्यथा के बादल
से घोर घटा छा आई है जैसे रजनी का आँचल।

रह-रह कर कौंध रही है स्मृति की तीखी विजली
क्षण-क्षण निशा दिवस वैसी छटती घिरती कजरी।

है घोर गर्जना करता यह निराश मन हारा
प्रतिध्वनि से फिर कँपता है हृदय शून्य भी सारा।

उत्कंठा आती है बन तीब्र पवन की आँधी
आशाएँ थमती ऐसे ज़ंजीरों में हों बाँधी।

ये घनी वेदना के घन अविरल घिरते रहते हैं
चित्त में रह-रह भारी वर्षात प्रेम की करते हैं।

वही नीर वह करके इन दृग द्वारों से गिरते
आर्द्र श्याम अलकों को करने को आतुर रहते।

बस आ जा इन बाहों में सावन आभास कराऊँ
पल-पल कैसे बीते हैं की मीठी कथा सुनाऊं।।



-              रमेश चंद्र तिवारी

Comments

Popular posts from this blog

आचार्य प्रवर महामंडलेश्वर युगपुरुष श्री स्वामी परमानन्द गिरी जी महाराज द्वारा प्रवचन - प्रस्तुति रमेश चन्द्र तिवारी

100th episode of PM Modi’s Man-ki-Baat

युगपुरुष स्वामी परमानन्द जी महाराज की अध्यक्षता में श्रीमद् भागवत