वीरांगना दुर्गावती

5 अक्तूबर 1524 को रानी दुर्गावती का बांदा में चंदेल राजवंश में जन्म हुआ तथा उनका विवाह गौँड राजवंश के दलपत राय से हुआ | वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था | दस हज़ार राजपूतों की मामूली सेना से गढ़मण्डला की रानी ने मुगल सम्राट अकबर की विशाल सेना को चुनौती दी थी | 24 जून, 1564 को युद्ध में गंभीर रूप से घायल होने के बाद रानी दुर्गावती ने अपने कटार को सीने में घोंपकर आत्म बलिदान कर लिया था | और इस तरह अपने सतीत्व व राजपूती धर्म को निभाया
वीरांगना दुर्गावतीएक ओज भरी वीर रस की कविता है | इसको पढ़ते समय आपका भी हाथ फड़क न उठे तो समझो इसने कुछ नहीं किया | इसको मैने 24 जून, 1988 को रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर लिखा था |

दामिनी समान गतिमान, दुतिमान
साथ तीर औ कमान
एक आन पैदा हो गयी,
जिसका कराल विकराल तलवार
ढाल रक्त प्यास से बेहाल
भूमि लाल कर गयी |

दुर्गा प्रचन्ड साथ वती एक और खण्ड
जोड़ के अखण्ड
दुर्गावती कही गयी,
मुगल महान सम्राट को दिखाने
रूप अपना विराट
सैन्य मध्य में भटी चली |

युद्ध में अनन्त दुर्दन्त बलवंत
नहीं पाए खोजे पंथ
देख ऐसी वीर घातिनी,
योधन के झुण्ड-झुण्ड केरे
काट रुण्ड-मुण्ड
बन नाचती चमुण्ड चली वो विनासिनी |

लोथन पे लोथ लदि ढेर जो पहाड़ बने
उसमें से झरने से
खून झरने लगे,
चारों ओर धावे रानी
मारे छितरावे रानी
केलन के पेंड सम शत्रु कटने लगे |

रानी की उदारता का गुण गान
मौत करे
भरि पेट भोजन खिलावे ऐसा कौन है,
प्राणों को बटोरि दूत ढोवें
और पूछे कि बताओ
यमराज महाराज रानी कौन है ?

इत आई रानी कभी उत धायी रानी
ऐसे हर ओर रानी
बस रानी दिखने लगी,
दुर्गा की धारदार तरवार का संहार  
देखि रिपु सेना सारी
चीख भरने लगी |

कोई जान ले के भागे मोरचा
पे आवे कोई
पर ज़्यादे देर नहि जीवित बना रहे,
कोई डर में गिरे वहोश होय
कोई मरे, बिन मारे
यही भाँति बहुत गिरें मरें |

मुगल की सेना थी अपार
पारावार सम
सहसों सिपाही खोय-खोय घटती न थी,
थोड़े से जवानों की ही
आँधी औ तूफ़ानों सी वो
अनी लघु रानी की भी पीछे हटती न थी |

इतने में जाने कैसे बस एक तीर आया
सीधे रानी दुर्गा की
आँख में ही जा धंसा,
पर झट उसको निकाल के
झपट पड़ी उस शेरनी के होते
युद्ध कैसे हो रुका |

अब छेड़ी सिंहनी सी प्राण की
पिपासिनी सी पावक तरंगिनी सी
ध्वंसकारी बन गयी,
रण छोड़ देखते ही अरि भागने लगे
कि हाय-हाय त्रासदी में
त्राहि-त्राहि मच गयी |

गले में भी तभी आई
एक और तीर लगी
खींच अपना कृपाण रानी उर भेद ली,
हँसते चिढ़ाते निज लाज
को बचाते घोर शत्रु को झुकाके
रानी स्वर्ग में प्रवेश की |

-          रमेश चन्द्र तिवारी

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