पर्यावरण

पर्यावरणशीर्षक बाल-कविता को मैने 21 मई, 1988 को रचा था | विभिन्न कवि सम्मेलनों में लोगों ने इसकी जमकर तारीफ़ की थी |

सिसक-सिसक कर रोती थी, वन के चिड़ियों की रानी
पिघल-पिघल दुख गिरता था, आँखों से बनकर पानी |

वहीं पास में उसका था, नन्हा सा प्यारा शिशु बैठा
दुखी हो रहा वह भी था, माता को देख-देख रोता |

मातृ अश्रु को पोंछ-पोंछ कर, बार-बार था पूछ रहा
हे माँ, मुझे बता दे तुझको, कौन कष्ट है बाध रहा ?’

रुँधे गले से फिर वह बोली, ‘बेटा मैं हूँ दुखी नहीं
इस तरह वेदना छिपा रही थी, पर ऐसे वह छिपा नहीं |

फूट-फूट कर विलख पड़ी, नयनों में बादल घिर आये
जिसका घर हो उजड़ गया, उसको संतोष कहाँ आये |

वो हरियाली छाँव निराली, स्वर्गिक वे पत्ते औ डाली
छोटे-छोटे गेह घोसले, चूं-चूं ची-ची की खुशियाली |

वे कलरव वे क्रंदन कूंजन, झाड़ी में झरनों का झर-झर
घने वनस्पति में घुस-घुस कर, वायू का करना वह सर-सर |

हाय ! सभी के सभी मिट गये, जंगल के कट जाने से
कितने जीवन उजड़ गये, उनकी कुटिया उड़ जाने से |

आख़िर में सब बता दिया माता ने अपने बच्चे को,
महाप्रलय भी दिखा दिया, अंजाने मन के सच्चे को |

लम्बी साँस शिशू ने ली, फिर बोला व्याकुल जननी से
उपज़ेंगे फिर कानन वैसे धीरज धर तू धरणी से |

खुश होना औ हँसना माँ, मैं सुबह खेलने जाऊँगा
वहाँ खेलते बच्चों को, सब कुछ कहकर बतलाऊँगा |

फिर मैं उनसे वादा लूँगा, बढ़कर बड़े होंगे जब
हरे-भरे जंगल से फिर से, भू भूषित कर देंगे तब |’

-          रमेश चन्द्र तिवारी

Comments

Popular posts from this blog

आचार्य प्रवर महामंडलेश्वर युगपुरुष श्री स्वामी परमानन्द गिरी जी महाराज द्वारा प्रवचन - प्रस्तुति रमेश चन्द्र तिवारी

100th episode of PM Modi’s Man-ki-Baat

युगपुरुष स्वामी परमानन्द जी महाराज की अध्यक्षता में श्रीमद् भागवत