मदारी
बचपन
के दिनों में जब फसल तैयार हो जाय दोपहर के समय अचानक मेरे गाँव के कुत्ते भौकने
लग जाएं, साथ में डमरू की तेज आवाज आने लग जाय | हम लोग घर से भागते हुये डमरू की आवाज की ओर दौडें और
देखें कि एक मदारी या तो बंदर या भालू या कई जमूरों के साथ किसी के घर के सामने
मैदान में बांसुरी के साथ डमरू बजा रहा और जमूरा ड्रम पीट रहा है | हम लोग बड़े चाव से उनके खेल देखें | अंत में मदारी जमूरे से बोले | बोल जमूरे, गाँव के लोग कैसे हैं ? वह चादर के अंदर से जवाब दे, गरीब | तो जमूरे तेरी रोटी का क्या होगा ? वो
बोले, लगता है हमारा तो बस उपर
वाला ही बचा है | ऐसा सुनकर गाँव के बच्चे ताव में आ जाएं और खूब सारा अनाज लाकर उसकी चादर के
उपर ढेर कर दें | मदारी यही खेल हर गाँव में घूम घूम कर करे और शाम तक
काफी धन बना ले |
आज के राजनेता पर सटिक बैठता है,
ReplyDeletevery nice ,good composing my ramesh tiwari ji
Thank you, Suresh ji
ReplyDeleteThank you, Suresh ji
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