अनुश्री-कविताएं : गुलाम और मालिक
प्यार पाकर भी अपनों से नफ़रतलात खाकर भी मालिक से उल्फ़त।गुलाम इसीलिए गुलाम होता है,स्वाभिमानी मालिक महान होता है।देखिये अनुश्री इसे कैसे सिद्ध करती है :
दरवाजे पर कातर आँखों से निहारता,एक टूक रोटी को टुकुर-टुकुर ताकता,धूल में उलट जाता, दुम हिलाता,वफादारी की पूं पूं फिर पैर चाटता ।अपने भाई को नोच डालता,प्राण निछावर कर देता –किसके खातिर ? – बस एक टूक रोटी !रात जागता थोड़ा सोता मेरा प्यारा मोती ।थर्राता सारा जंगल जब दहाड़ता ।दिल की दीवालें हिलतीं हैं,खुद भोजन सम्मुख गिर जातें हैं,साहस, दुस्साहस की जड़ें उखाड़ता ।पालता पोषता प्यार से परिवार को,न सिर् झुकाता है, न मुफ्त माँगता है,स्वाभिमान सीने में भरकरबेफिक्र जीता है, सोता है, खाता पीता है ।सब जानता है पर हाथ फैलाना नहीं,जंगल का सम्राट जिसे कौन जानता नहीं ।
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