कोई भी नई व्यवस्था प्रारंभ में कुछ वर्षों तक अच्छे से चलती है | धीरे-धीरे उसमें अवमूल्यन आता है और एक दिन वह इतनी विगड़ जाती है कि अराजकता और आभाव से लोग त्रस्त होकर एक नई व्यवस्था का निर्माण कर लेते हैं | देश आज़ाद हुए और हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था लागू हुए बहुत दिन नहीं हुए | आश्चर्य है कि हमारा किशोर प्रजातंत्र इतना शीघ्र कृशकाय-बृद्ध कैसे हो गया ! पुलिस का उद्देश्य सिर्फ़ जनता से वसूली करना है; मीडिया का उद्देश्य मात्र पैसा कमाना है; न्यपालिका का उद्देश्य लोगों से केवल धन ऐंठना है; और तो और सरकार का भी यही उद्देश्य है | जनता के प्रति जवाबदेही किसी की नहीं ? कहने को जनता सब कुछ है किंतु सत्य यह है कि यह घास की तरह है जिसे कुछ प्रभावशाली जानवर मूर्ख बनाकर चरे जा रहे हैं |
स्वतंत्र तो शेर होता है जो निर्भय जंगल में कहीं सो जाता है। जिसमें भय है, मालिक को खुश रखने की जिज्ञासा है वह स्वतंत्र कहां ? लम्बे समय तक गुलामी ने अधिकतर भारतियों के रक्त में पराघीनता घोल दिया है जो सदियों पश्चात ही शुद्ध होगा यदि भारत फिर से गुलाम न हुआ तो। यदि दुनिया में ज्ञान और कौशल की सबसे कम कीमत है तो वह भारत में है | भारतीय एक्सपर्ट युवक यहाँ तिरस्कृत होकर विदेश चले जाते हैं | वहाँ वे अपनी बुद्धि से आधुनिक चीज़ों का निर्माण करते हैं जिन्हें भारत वापस मँहगे कीमत पर खरीदता है | यह विडम्बना नहीं तो और क्या है ?
समाज को बाँटने के लिए राजनीतिक पार्टियाँ क्या क्या कर सकती हैं इसकी कल्पना नहीं की जा सकती | यह कार्य बहुत हिंसक है | ग़रीबी अमीरी प्रकृति के शास्वत नियम का अंग है - न सभी ग़रीब हो सकते हैं और न सभी अमीर | वाम पंथी इस नियम के विरुद्ध ग़रीबों को अमीरों के खिलाफ भड़का करके राजनीति नहीं करते बल्कि अपना राजनीतिक व्यवसाय चलाते हैं | इसी तरह दक्षिण पन्थी धार्मिक उन्माद फैलाते हैं | अब समाज को तोड़ने का एक नया तरीका निकाला है - बाबा साहेब की मूर्तियों को क्षति ग्रस्त करना ताकि आरक्षित वर्ग में सामान्य वर्ग के विरुद्ध घृणा पैदा की जा सके | आप समझ गये होंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूँ | खैर, इसमें ईंधन की तरह जलती जनता है उनकी तो क्या, उनकी इस ताप में रोटियाँ सिकती हैं |
साम्प्रदायिकता और प्रजातन्त्र अलग अलग नहीं रह सकते। लाेग भ्रम में हैं कि कोई पार्टी किसी सम्प्रदाय विशेष की शुभचिंतक है। सच तो यह है कि शुभचिंतक होने की आड़ में वे जनता में भय पैदा करके वोट लेती हैं। यही अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन करते हैं और दूसरे प्रजातांत्रिक देश भी यही करते हैं। मुस्लिम आतंकवाद इन्हीं किसानों की फसलें हैं। मुस्लिम इसलिए क्योंकि यह वर्ग अपनी धार्मिक कट्टरता की वजह से सहज ही इस कार्य के लिए उपयोगी होता है।
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