Saturday 12 September 2015

दर्द काँटों की चुभन का

इस गीत को मैने ०८ अक्तूबर १९८८ को लिखा था विश्वास टूटने पर प्रतिक्रिया के भाव हृदय में ऐसे फैलते हैं जैसे अश्रु विसर्जित करने के पश्चात एक अदभुद शान्ति से हृदय तृप्त होता है

एक सुन्‍दर व सुकोमल फूल से दिल फट गया
दर्द काँटों की चुभन का कम हुआ

प्यास बुझने की जहाँ उम्मीद थी
पास से देखा वहाँ बस धूल थी
प्यार देकर हर जगह नफ़रत मिला
दर्द काँटों की चुभन का कम हुआ
एक सुन्‍दर व सुकोमल फूल से दिल फट गया ….

ये मौत मुझको तू डरा सकती नहीं
जिंदगी है वेरहम ज़्यादा कहीं
दाम में है प्रेम अब विकने लगा
दर्द काँटों की चुभन का कम हुआ
एक सुन्‍दर व सुकोमल फूल से दिल फट गया ….

विजलियाँ बादल बनाते हैं अगर
तो मेरे ये दोस्तों छोड़ो डगर
यह पतिन्गा आज लौ से बच गया
दर्द काँटों की चुभन का कम हुआ
एक सुन्‍दर व सुकोमल फूल से दिल फट गया ….
-          रमेश चन्द्र तिवारी

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