राजनीति
‘राजनीति’
की रचना मैने 18 मार्च 1988 को
की थी |
गावों
में है राजनीति शहर में राजनीति
राज्य
में भी राजनीति व्यापी देश भर में |
चाहे
स्कूल कारखाना काहे चाहे न हो
दफ़्तर
हो कोई राजनीति फैली सब में |
खेत
खलियान हाट-बाट औ दुकान सब
धर्म
स्थान राजनीति का शिकार है |
धर्म औ
अधर्म को मिलाय सब एक करि
शास्त्र
राजनीति का विशाल औ उदार है |
देखो हर
ओर राजनीति की ही जीत है
फिल्मी
स्टारों को भी करनी राजनीति है |
नीति
राजनीति है अनीति राजनीति है
धोखा
धड़ी झूंठ सांच सब राजनीति है |
लुटे
हुए लोग कहें चोर औ लुटेरे कहें
चोरी कर
चोर कहें यही राजनीति है |
राजा और
राजनीति की यहाँ कमी नहीं
प्रजा
का आभाव भी तो एक राजनीति है |
और देश
आगे हैं तो हम कहाँ पीछे हैं
माना वे
तमाम बार बाजी मार जाते हैं |
राजनीति
दौड़ में हमार देश वैसे आगे
गोल्ड का
मेडल एक हम भी मार लाते हैं |
दंगे औ
फ़साद के बेढंगे नंगे नाच देखो
गीध
देखो लोखड़ी सियार भाँति-भाँति हैं |
गधन के
जूता धामें शेर और बाघ देखो
अंधे
अनुयाइयों की भीड़ तौ अपार है |
जोकर
अजीब देखो ज्ञानियों की खीस देखो
नंगन की
नाच देखो गीत सुनो गूंगन के |
ऐसे
हास्य दृश्य के अनेक आइटम देखो
चित्र
हैं विचित्र औ चरित्र राजनीति के |
हत्या
करो लूटपाट या बलात्कार करो
लोगों
को निचोड़ कर उनका रक्त पान करो |
देश
बेच-बेच कैस को कहीं छिपाय धरो
देश
द्रोह यही भाँति कितने ही तुम करो |
पर
राजनीति केरी भक्ति को अवश्य करो
हर राज
दंड से सुरक्षा यह करता |
गुण
राजनीति का महान भगवान सम
अधम-उधार
कार्य आज यह करता |
कितने
ही नीच औ अमानविक कृत्य पर
सब पर
राजनीति आज की कृपालु है |
हर नीति
फेल इस नीति के समक्ष अब
राजनीति
से ही राजनीति भी बेहाल है |
जननी है
इस दुष्नीति की सामाज नीति
अपने
कपूत केरे उत्पात सहती |
प्यार
से सुधार के उपाय वह सोचती
क्रोध
में नहीं तो फिर टाँग नोच सकती |
राजनीति
प्रेमियों सुधर अब जाओ तुम
जनता
जान जाएगी तो मुँह नोच डालेगी |
अथवा
तुम्हारे हाथ पैर तोड़ फेंक देगी
फिर
राजनीति तुम पे भारी पड़ जाएगी ||
- रमेश चंद्र
तिवारी
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