Sunday 16 August 2015

वर्षागमन गीत

वर्षागमन गीतशीर्षक कविता मैने 09 जून, 1988 को लिखा था जो बाद में दैनिक युगधर्म रायपुर में 26 जून, 1988 को प्रकाशित हुई
ये ! तेज हवाएँ शीतल,
ये ! काले विरले बादल,
क्या आता देखा तुमने
वर्षा ऋतु रानी का दल ?

सागर से उठते डोली
क्या उसकी तुमने देखा ?
गर्जन के मंगल वादन
ने तुमको था क्या रोका ?

या आगे-आगे तुम हो
उसकी अगवानी करते ?
आ रही है क्या वह पीछे
मेघों के रथ पर चढ़के ?

हैं राह देखतीं प्यासी
ये कूप, सरोवर, नदियाँ
भूतल व वृक्ष, वनस्पति,
जन, पशु, निश्चेतन चिड़ियाँ ।

कह दे तू उसको जाकर
वह शीघ्र यहाँ आ जाए,
अब सावन से हम सबकी
जल्दी ही भेंट कराए ।

हैं बाट जोहते सारे
बस एक मात्र ही तेरी’,
जा करके उससे कह दे
अब और करे न देरी ।

उसको बतलाना यह भी
ऋतुराज यहाँ थे आये,
हर द्रुम को नव पत्रों से
उनने थे खूब सजाए ।

ग्रीष्म ने आकर उन पर
लू धूल उड़ाया इतना
मुरझाए से हैं वे सब
उनका है बन्द मचलना ।

कहना तत्क्षण ही आये
आ करके उनको धोए,
निर्वस्त्र धरा को फिरसे
नव, हरे वसन पहनाये ।
-          रमेश चंद्र तिवारी 

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